Gita Parihar

Inspirational

3.8  

Gita Parihar

Inspirational

नारी

नारी

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स्त्री की रचना करना आसान नहीं था

रचयिता गीली माटी,रंग,कूची लिए बैठे हैं

बीत गए दिन पांच, रचना अभी भी अधूरी थी

असमंजस में ब्रह्मा, विष्णु और महेश सहित

सकल गण, विलम्ब क्यों करुणानिधान ?

बोले रचयिता समाएं क्यूं कर गुण धर्म सभी

सहज इक कोमल मूरत में!विकल हूं इसी उधेड़बुन में

एक धुरी जो साधे सभी को,रखें सबका ध्यान

बाल, वृद्ध ,रोगी की सेवा करे समान

निज घाव छिपा कर,भरे सबन के घाव

कोमल तन - मन और महज दो हाथ!

अश्रुजल जो बहे कभी कमज़ोर न समझें आप

अश्रु नहीं ताक़त है ज्यूं नदी की बाढ़

रौद्र रूप धरे जब कांपे खुद यमराज

स्त्री रूपी रचना अद्भुत हो धीरज 

कभी पुरुष की ताकत हो , कभी उसकी कमजोरी

शील,संयम, हर्ष, शौर्य, सूझबूझ से संस्कारित

ममता,क्षमा,दया से शोभित कैसे तराशूं यह मूरत?

 निरपराध होकर भी अग्नि परीक्षा को रहे तैयार

जो सुने सबकी ,कहे न अपनी,मांगे न अधिकार

हो वंदनीय और कामनीय प्रिया भी

सृजन और विध्वंस की नवीन सृष्टि भी

प्रखरता दिव्य ज्योति सी

जीवन का मधुमास सी

ज्ञान बुद्धि की बाग्मति, आद्या शक्ति सी

पावन सी पावनी, संवेदना का प्रतिमान सी

सार्थक सृजन,कल्पतरु सी

झुकी फूलों की डाली सी

तेज सूरज का हो, चन्द्रमा की शीतलता सी

भोर के तारे सी, ओमकार की ध्वनि सी

ठहराव हो समन्दर सा, नदियों सी रवानी हो

खुशफहमियों में जीए, स्वयं में सम्पूर्ण हो।


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