ज्योतिषी
ज्योतिषी
मेरी शादी को हुए कुछ ही दिन हुए थे। उन दिनों घर- घर टेलिफोन नहीं हुआ करते थे। बस पत्र ही एक दूसरे से जोड़ते थे। पोस्ट कार्ड,अन्तर्देशीय और लिफाफे यही थे संदेशवाहक। यदि तात्कालिक समाचार लेना- देना होता था तो घंटो पोस्ट ऑफिस की टेलीग्राम सेवा की कतार में लगना होता था। सो, पिताजी के ,बहन और सहेलियों के पत्रों का इंतेज़ार रहता था। उन दिनों पोस्टमैन का इंतज़ार कैसे होता था ये उन दिनों के बॉलीवुड फिल्मी गीतों से अंदाज़ा लगा सकते हैं। मुझे भी अपने पिताजी से हर हफ्ते एक पत्र का बेसब्री से इंतज़ार रहता था।
एक पत्र को करीब 3 दिन लग जाते थे पहुंचने में। इसलिए जैसे ही एक व्यक्ति को ख़त मिलता ,वह ज़वाब लिख कर पोस्ट करता तो दूसरे छोर पर वह तीसरे दिन पहुंचता, इस तरह यह प्रक्रिया होती एक हफ़्ते की। पिताजी अकेले थे अहमदाबाद में और हम थे फैज़ाबाद में, मैं और मेरे पति। एक दोपहर मैं पत्र का इंतज़ार कर रही थी,तभी दरवाज़ पर दस्तक हुई। दरवाज़ा खोला तो कोई नहीं था,हां,एक पोस्टमैन सामने पेड़ के नीचे बैठकर पत्र छांटता नज़र आया। मैं दरवाज़ खोले खड़ी रही,शायद उसने ही दरवाज़ा खटखटाया हो। शायद मेरा पत्र आया हो।
थोड़ी देर बाद वह उठा और मेरे पास आया,मेरा नाम पूछा और एक पत्र पकड़ा दिया। पत्र पिताजी का ही था। मैने लपक कर पत्र लिया। दरवाज़ा बंद किया और पत्र पड़ने लगी। उनकी सलामती जान कर खत का उत्तर लिख कर,लिफाफा तैयार कर कुछ देर के लिए चैन से दोपहर की एक झपकी लेने चल दी। शाम को पतिदेव घर आए। हम कई दिनों से एक अच्छा घर ढूंढ़ रहे थे। इन्होंने कहा,तैयार हो जाओ,मकान देखने चलेंगे।
थोड़ी देर में हम मकान देखने गए। मकान में उस समय उस हिस्से में अधिक उजाला नहीं था और न ही मकान मालिक ने वहां बल्ब लगाये थे,मगर इतनी रोशनी थी कि कमरे नज़र आ रहे थे। मकान मालिक ने घूम- घूम कर मकान दिखाया। मकान हमें पसंद आ गया, तो मकान मालिक ने कहा ,आइये ,नीचे चलकर बात करते हैं। वे निचले हिस्से में रहते थे। नीचे पहुंच कर उन्होंने किराए ओर एडवांस की बात की। हम राज़ी हो गए। अब तक वे मेरे पति से ही मुखातिब थे। जब सब तय हो गया और हम चलने लगे उनकी निगाह मुझ पर पड़ी।
चौंक कर उन्होंने कहा,आपका नाम गीता है?मैने कहा हां,उन्होंने पूछा ,गीता परिहार ?मैंने कहा, हां,वे फिर बोले,आप बल्ला हाता में रह रहे है ?मैने फिर कहा ,हां। आपके यहां आज एक चिट्ठी आई थी ?मैने कहा ,हां, हां । अब मेरे सब्र का बांध टूट गया मैने पूछा आप ज्योतिषी हैं क्या ?अरे वाह,(मुझे अपना भविष्य जानने की बहुत इच्छा रहती थी)ये तो बहुत अच्छा रहा ! और अपना हाथ आगे बढ़ा ही देती कि उन्होंने कहा, मैं पोस्टमैन हूं, उसी एरिया में आजकल ड्यूटी लगी है,आज मैने एक चिट्ठी आपको दी थी। आपने मुझे नहीं पहचाना ?
उस बात पर मुझे पहले तो इतनी झेंप हुई फिर उतनी ही हंसी भी आई। मैने कहा,भला मैं एक पोस्टमैन को क्यों इतना गौर से देखती और याद भी रखती कि कहीं मिलूं तो पहचान भी लूं ? मेरी बात सुनकर वह झेंप गये। अपनी खिसियाहट छिपाते हुए कहा, वैसे भी एक व्यक्ति जब यूनिफार्म में होता है तब और जब सामान्य कपड़ों में होता है तो पहचानना मुश्किल हो जाता है। आज भी उस वाक्ये को याद करके अपनी नादानी पर हंसी आ जाती है।