औरत हूँ
औरत हूँ
जब लोगों के सवालों का जवाब नहीं होता मेरे पास ,
तब चेहरे पर एक नकली मुस्कान लगा लेती हूँ।
जब महफ़िल मैं भी ख़ुद को तन्हा पाती हूँ ,
तब किसी पुरानी अच्छी याद से दिल लगा लेती हूँ।
जब मेरी कोशिशों को तारीफ़ के अल्फाज नहीं मिलते हैं ,
तब शाबाशी के लिए अपनी पीठ खुद ही थपथपा लेती हूँ।
औरत हूँ ,इसीलिए अपने को बहलाने के तरीके खुद ही इज़ाद कर लेती हूँ।
