मोह माया
मोह माया


मोह माया का चक्रव्यूह है यह,
त्याग है या कोई खेल है यह,
है भेस संत का, ग्रन्थ पड़े कपट का,
तप करे चोटी पर, खाये रोटी बड़ी सी कोठी पर,
संसार का इन्हें मोह कहाँ,
किन्तु हरी पत्ती से कभी मुंह मोड़ा ही कहाँ;
प्रवचन कर रहे यह, बांट रहे यह उच्च ज्ञान,
मुख पर स्मित रखे चल दिए है आज,
त्याग दिया है पूरा संसार,
फिर क्यों मोह-माया के दल-दल में फस गए है यह आज..!!