बैरी चाँद
बैरी चाँद


इश्क के आशियाने मे बसता था मगरुर माहताब
ताऊम्र जिसे संभालकर रखा वही चाँद मेरा बैरी निकला
दर्द की परते खुल खुलकर बिखर गयी
पैमाने मे मेरी वह छलकता हुआ निकला
काली रातो के अंधेरो ने छीन लिया सबकुछ
रोशनी से घर अपना जलाकर निकला
चाँद से चेहरे ने झुलसाया इस कदर
रात आते ही भागा भागा सा निकला
सदियाँ गुजर गयी इन्तज़ार में चाँद के
बेतहाशा मगर वह अपने समय से निकला
सितारो की महफिल से चाँद था नदारद
आहिस्ता आहिस्ता अपनी ओट से निकला
थक गया था चाँद अपनी ही तलाश में
बेफिक्र होकर दयरो हरम के पीछे से निकला।