मैं फिर भी उड़ कर दिखाऊंगी
मैं फिर भी उड़ कर दिखाऊंगी
यह आसमां मेरी मुट्ठी में
मैं भी लेना चाहती हूँ।
युगों युगों का डर मन से निकालकर
निडर होकर जीना चाहती हूँ ।
वह चार दीवारें, वह दहलीज
क्यों यही ही अस्तित्व है मेरा
इस दुनिया की सारी खूबसूरती
मैं भी देखना चाहती हूँ।
क्यों डर लगता है मेरा
समाज को आगे जाने से
यह घूंघट उठा कर थोड़ा
मैं भी जीना चाहती हूँ।
मेरी आवाज क्यों दबाई जाती है
जब मैं बोलना चाहती हूँ
मेरी लिखावट मिटाई जाती है
जब मैं कुछ लिखना चाहती हूँ।
क्यों है यह संघर्ष युगों युगों से मेरा
इंसान हूँ मैं भी
इंसान जैसा जीना चाहती हूँ।
तुम लाख करो कोशिश
मैं जीत कर दिखाऊंगी।
सूरज की रोशनी बनकर
मैं फिर वापस आऊंगी।
सागर के तूफानों से बढ़कर
है संघर्ष मेरा
तुम काट लो पंख मेरे
मैं फिर भी उड़ कर दिखाऊंगी।