दावपेंच
दावपेंच
कपूत ही बेचते हैं पुरखो की दौलत
सपूत इस कला मे माहिर नहीं होते
खुद ही खाक कर डालते हैं लगाकर आग आशियाना अपना
हुक्मरानो की साजिशो के गवाहदार नही होते
तुम्हारी सोच के परे है नजरें उनकी
सियासत के दावपेच अकेले नहीं होते
खामोश शहरों में चमकती है समशिरे
काफिलो के दरम्यान दंगे नहीं होते
होती है कानाफुसी दबी हुई आवाज में
आइनों के यहाँ राजदार नहीं होते
राशन की सस्ती दुकानों मे देखी लंबी कतारे
पर छोटे पंछियों में उड़ान के हौसले नहीं होते
दाने डालकर जाल बिछा गया शिकारी
अब सिवाय कटने के कोई और बहाने नहीं होते
समझ सको तो समझलो जहाँवालो वक्त अब भी गुजरा नहीं
कल मत कहना वक्त के निशां नहीं होते !