सृष्टि
सृष्टि
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इस सृष्टि को जानो तुम
पहचानो तुम।
कभी सोचा है तुमने
जब धरती पर पड़ती सूरज की किरणें
कली से बनता फूल
अपनी खुशबु को फैलाता
अपनी ओर आकर्षित करता
खींचता अपनी ओर
स्पर्श करने को मजबूर करता
इस सृष्टि को जानो तुम
पहचानो
रात की चांदनी में पड़ती ओस की बूंदें
ऐसा लगता
जैसे नृत्य करती परियां
पहरा देता चंद्रमा
तारों का टिमटिमाना
लगता सखियों का साथ नाचना
नदियों की कल-कल ध्वनि
मन को भयभीत करती
बादलों की रिमझिम बारिश
मन को हर्षित करती
झरनों की झनझनाहट
आंखों को तृप्त करती
इस सृष्टि को जानो तुम
पहचानो तुम।