अमीरों की दुनिया
अमीरों की दुनिया
बड़ी अजब होती है,
यह अमीरों की दुनिया,
बड़े बड़े कमरों वाले घर,
इक पूरे मोहल्ले से,
यह बड़े बड़े सबके कमरे
हर कमरे में अपनी ही पूरी दुनिया,
कोई बाहर झांकता ही नहीं,
एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने में,
हफ्तों लग जाते हैं,
यूं लगता है,
ना जाने कितने मीलों की दूरी तय करनी है ,
अपनी दुनिया छोड़, दूसरे की दुनिया में जाना,
अब इतना आसान भी नहीं होता।
बड़ी ही अजब होती है,
इन अमीरों की दुनिया,
सारे साजो सामान से,
बनवाया गया रसोई घर,
दुनिया भर की चीज़ो से भरा रसोई घर,
मगर घर की मालकिन के तो पसीने निकल आते,
बेशक वहां चल रहा है एअरकण्डीशनर,
फ्रिज में कितना सामान है, कितना नहीं,
घर के नौकरों को खबर होती है सारी,
कितनी चीनी बची है, कितना चावल आना है ,
कौन सी सब्जी फ्रिज में पड़ी -पड़ी,सड़ गई है,
तो और कितनी लानी है लौकी, तौरी,
चीनी कब ख़तम हो गई,
तो आटा क्यो कम पड़ गया,
इन सबका हिसाब,
शायद रामू ठीक से रख नहीं पाया,
बेटे को तो पिज्जा खाना था,
ममता ने क्यो आलू का पराँठा बनाया।
बड़ी अजब ही होती है,
इन अमीरों की दुनिया,
बच्चे तो बस पैदा कर दिये जाते हैं,
पैदा करने के बाद,
सौंप दिए जाते हैं आया को,
वह कब सोता है, कब खाता है,
किस बात पर हँसता है,
किस बात पर रो देता है,
मां बाप से कहीं ज्यादा
जानती है उसकी आया।
वह क्यो रोता है,
उसकी आया के सिवा,
किसी को समझ नहीं आया
वो बेचारा मासूम बच्चा,
मां का पर्याय आया को ही
समझता आया।
बड़ी अजब होती हैं,
इन अमीरों की दुनिया,
पैसा बहुत है,
इसलिए कर चीज़ खरीद लेते हैं,
हम पैसे वाले हैं,
सब कुछ खरीद सकते हैं,
इसीलिए एक दिन एक पालतू जानवर भी
खरीद लाते हैं,
वह बेचारा जानवर,
क्या जाने अमीरी -गरीबी का अन्तर,
उसे तो बस समय चाहिए,
प्यार ही है एक मन्तर,
मगर उसे तो बस अपने स्टेटस के लिए है खरीदा,
यहां तो कोई दो शब्द प्यार के नहीं बोलता,
घर के तमाम नौकरों में से,
कोई ना कोई खाना डाल ही जाता है,
उस बेचारे को कभी मालिक पर प्यार आये तो,
कपड़े गन्दे हो जाएगे ,
इस ख्याल से वो उसको है झटक देता।
वह बेचारा जानवर तो बस प्यार का है भूखा,
अमीर और उनका मन होता है इतना रूखा,
यह बात नही जानता वह बेचारा,
हर बार आशा भरी नज़रों से है ताकता
कि शायद आज किसी को उस पर प्यार आयेगा,
कोई दो घड़ी उसके भी साथ बिताएगा।