किताबें
किताबें
कहने को तो चंद पन्ने हैं किताबें,
मगर हकीकत में एक खज़ाना हैं किताबें।
कितने ही राज़ दफ्न रखती हैं किताबें,
ना जाने कैसे-कैसे रहस्य छिपाये हैं किताबें ।
कभी प्यार को पाने की खुशी हैं किताबें,
तो कभी इकतरफा प्यार की कहानी हैं किताबें।
कहीं प्रीतम से वियोग का दुख हैं किताबें,
तो कभी अपने साजन संग सुहागरात हैं किताबें ।
कभी किसी के हार का दर्द बयान करती हैं किताबें,
तो कभी किसी के जीत का जश्न हैं किताबें ।
कभी किसी पत्नी की घुटन हैं किताबें,
तो कभी कभी अपने अधिकार की जंग हैं किताबें ।
कभी पति की समझदारी है किताबें,
तो कभी पति का अहंकार हैं किताबें ।
कभी अपने ही माता पिता से प्यार को तरसती हैं किताबें,
तो कभी किसी अनाथ की कहानी हैं किताबें ।
कभी सुबह सूरज की लालिमा सी दमकती हैं किताबें,
तो कभी रात के अंधेरे की कालिमा हैं किताबें ।
कभी राधा के चंचल मन की कथा हैं किताबें,
तो कभी मीरा की भक्ति बताती हैं किताबें ।
कभी किसी वैश्या की रात की कहानी हैं किताबें,
तो कभी किसी बलात्कार की दिल झंझोड़ देने वाली घटना हैं किताबें ।
कभी अपनों से चीरहरण का दर्द बताती हैं किताबें,
तो कभी सीता के हरण की कहानी हैं किताबें ।
कभी आजादी का संघर्ष बताती हैं किताबें,
तो कभी बंटवारे का ज़ख्म दिखाती हैं किताबें ।
जैसी सोच रक्खो वैसी हैं किताबें,
अच्छी बुरी हर तरह की हैं किताबें ।
नीर, रूकी हुई सी रहती हैं किताबें,
किसी के कमरों की शोभा बनती हैं किताबें,
मगर हकीकत में अपने में एक पूरी दुनिया समेटे रहती हैं किताबें ।