डर
डर


सड़कों का यह सन्नाटा,
कितना डरावना लगता है,
हर जगह मातम सा लगता है।
सड़कों पर गाड़ियों का शोर नहीं,
सड़कों पर लोगों की भीड़ नहीं,
हर समय ऐंबुलेंस का सायरन बजता है।
चेहरों पर मास्क चढा है,
मगर आंखों से खौफ,
साफ झलकता है।
विरान से हो गये हैं पार्क,
यह झूले तरसते हैं बचपन को,
बचपन अपने बचपने को तरसता है।
पिछली बार डराया था तुमने,
मगर शायद हमारी लापरवाही ने,
तुमको और ताकतवर बना दिया इस बार।
हर जगह, हर दिन,
किसी परिवार का कोई दुलारा,
तेरी भूख का निवाला बनता है।
हैं घरों मे कैद सब,
खिड़कियों से झांक लेते सब,
मगर किसी अनहोनी से हर पल यह मन डरता है।
रूकी हुई जिन्दगी से थके सब,
अब तो हर इन्सान,
भागती दौड़ती जिन्दगी को तरसता है।
हराना होगा इस कोरोना को,
रोकना होगा हर दिन के क्रन्दन को,
दिखानी होगी समझदारी सभी को,
दोस्तों, हमारी लापरवाही से ही यह पनपता है।
सड़कों का यह सन्नाटा,
कितना डरावना लगता है,
हर जगह मातम सा लगता है।
सड़कों पर गाड़ियों का शोर नहीं,
सड़कों पर लोगों की भीड़ नहीं,
हर समय ऐंबुलेंस का सायरन बजता है।
चेहरों पर मास्क चढा है,
मगर आंखों से खौ,
साफ झलकता है।
विरान से हो गये हैं पार्क,
यह झूले तरसते हैं बचपन को,
बचपन अपने बचपने को तरसता है।
पिछली बार डराया था तुमने,
मगर शायद हमारी लापरवाही ने,
तुमको और ताकतवर बना दिया इस बार।
हर जगह, हर दिन ,
किसी परिवार का कोई दुलारा,
तेरी भूख का निवाला बनता है।
हैं घरों मे कैद सब,
खिड़कियों से झांक लेते सब,
मगर किसी अनहोनी से हर पल यह मन डरता है।
रूकी हुई जिन्दगी से थके सब,
अब तो हर इन्सान,
भागती दौड़ती जिन्दगी को तरसता है।
हराना होगा इस कोरोना को,
रोकना होगा हर दिन के क्रन्दन को,
दिखानी होगी समझदारी सभी को,
दोस्तों, हमारी लापरवाही से ही यह पनपता है।