अल्फ़ाज़-ए-हिना
अल्फ़ाज़-ए-हिना
चाहते हैं उन्हे उनसे भी जायदा ,खयाल आता है उनका नींदों से भी ज़्यादा।
हर पल रूह में उतर जाते हैं वो जब भी आते है हमारी सांसों में बस कर।
इकरार कभी किया नहीं उन्होंने अपनी चाहत का, इन्कार भी पर वो करना नहीं चाहते,
इज़हार थो हम भी करले उनसे पर जो अल्फो में बयान हो जाए हम उन्हे उतना नहीं चाहते।।
दिल में बसा ले हम उन्हे, मगर पता नहीं शायद वो हमारे दिल में रहना नहीं चाहते।।
खवाईश थो है ही मेरी वो, पर हम उन्हे ज़रूरत नहीं बना ना चाहते।।