STORYMIRROR

Shahid Kazi

Tragedy Others

4  

Shahid Kazi

Tragedy Others

अकेले

अकेले

1 min
292

राहों में खड़े है अकेले 

इंतज़ार में किसी के

सपनों में जीते है वो दिन

दीदार हो जब किसी के ॥


ख्यालों में थमा था हाथ

ज़िन्दगी ने न अपनाया

एक छोटी सी अपनी दुनिया की चाह थी

सच तो वो भी न हो पाया ॥


जागते सोते आँखों में कुछ अरमान 

हर पल हर लम्हे वही मेरा जहान

कह देते दिल की हर छुपी दास्तान

सामने उनके कमबख़्त लड़खड़ाती जुबां ॥


हिम्मत जो कर दूँ हो दिन एक ऐसा भी 

कह दूँ दिल की बात हर छोटी बड़ी भी ॥


आँखें खुली तो पाया 

हाथ बढ़ाये खड़े थे 

सपनों में थामा था हाथ 

ज़िन्दगी में बस अकेले ही खड़े थे ॥


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy