मेरी सुस्त टांगें
मेरी सुस्त टांगें
सुस्त टांगें मेरी कह गयी मुझसे
जुल्म ढ़ाओगे कितना रेहम करो मुझपे ॥
चलते चलते थक जाते हैं
राहों में ही रुक जाते हैं
दौड़ना इनका काम नहीं
दिन भर बैठे रह जाते है ॥
सुस्त टांगें मेरी कह गयी मुझसे
जुल्म ढ़ाओगे कितना रेहम करो मुझपे ॥
खेलने गए हम क्रिकेट एक दिन
रो गयी टांगें मेरी उस दिन
घर तक पहुँचाया चीख चिल्ला के
धड़ से गिराया मुझे सोफे पे ॥
सबक दिया मुझको
नहीं करूँगा ऐसा कभी
सुस्त हैं टांगें मेरी
नहीं खेलूंगा कभी ॥
घर बैठे फैट जाना खा खा के
टांगों को तड़पाना ना दर्द देके
सुस्त टांगें मेरी कह गयी मुझसे
जुल्म ढ़ाओगे कितना रेहम करो मुझपे ॥