तबादला
तबादला
बड़े शान से
ऊंची कुर्सियों पर बैठे
कुछ चुनिंदे शक्तिशाली लोग
किसी मजबूर इंसान का
'तबादला' तो
पलक झपकते ही
कर दिया करते हैं, मगर
उनकी हालात-ओ-हक़ीक़त का
ज़मीनी जायज़ा लेने
कभी नहीं आया करते !
तो क्या हुआ, अगर
उस लाचार मजबूर इंसान के
टूटे-फूटे घर के छत में बने
अनगिनत छिद्रों से
असमय बारिश की बूंदों के
आनन-फानन टपकने से
उसका बिस्तर और
अन्य कई ज़रूरी सामान
बेइंतहा बरसात के पानी से
आए दिन भीग जाया करता है...!!
वो ऊंचे मकानों में रहनेवाले
'तथाकथित' नियम लागू करनेवाले
'शक्तिशाली' लोग
अपनी 'कलम' की ताक़त का
आए दिन यूँ ही
'उनमुक्त' प्रदर्शन करनेवाले लोग
क्या जाने किसी 'ईमानदार' इंसान की
निजी तकलीफों और मुसीबतों के बारे में...
उन्हें तो 'बड़ी-बड़ी मीटिंग' आदि में
अपनी बातें कहने से ही
फुरसत नहीं मिलती...!!!
उनके कभी न पूरे होनेवाले
खोखले 'वादों' का क्या कहना...
वो तो मौसम की तरह बदल जाया करते हैं...!!!
उनके इरादों का कोई हासिल नहीं;
उनके वादों का कोई हासिल नहीं...
वो तो बिन बादल बरसात की तरह
किसी 'मजबूर' इंसान की
ख्वाबों-ख्वाहिशों की दुनिया ही
डुबोकर चले जाते हैं...
वो तो आखिर अपनी
'फितरत' दिखाकर रुखसत हो जाते हैं...!
यही नाटक अरसे से चलता आ रहा है...
और यूँ ही गुज़र जाएगी ये
जद्दोजहद भरी 'गुमनाम' ज़िंदगी...
हाय रे, दिखावे की दुनियादारी !!!
हाय रे, दिखावे का तामझाम !!!
हाय रे, तबादला !!!
