रुपये का ही खेल सारा...
रुपये का ही खेल सारा...
चाहे कितने ही
निष्काम कर्म की
'किताबी' बातें
क्यों न किया करें...
चाहे अनगिनत पन्नों में
त्याग और तपस्या की
कहानियां लिखते जाएं,
बात सच्ची मगर कड़वी है --
"जब अपनी जेब में
फूटी कौड़ी नहीं,
तब हर बंदा ठंठन-गोपाल..."।
हर एक मक़ाम की
कामयाबी में लगता है रुपया...!
छोटे-बड़े हरेक काम में
काम आए बस रुपया...
बिन पानी जैसे जान नहीं,
वैसे ही रुपये बिना यहाँ
किसी की पहचान नहीं...
ये सुनने में अटपटा है,
मगर बिन रुपये के
कोई शान नहीं...!!!
तो आप अपने आप से पूछिए
आपकी बैंक बैलेंस कितनी है !!!
