मूर्खता
मूर्खता
मेरी सबसे बड़ी मूर्खता ये है
कि मैंने अपने
काम के 'चक्रव्यूह' में फँसकर
अपनी पारिवारिक सुख-सुविधाओं एवं
मूलभूत ज़रूरतों की ही
बलि चढ़ा दी...!
और बदले में मुझ 'बेवकूफ' को
क्या मिला?
"ठेंगा...!!!"
और जब दूसरे लोग
अपनी ज़रूरतों के मुताबिक
अपना काम निकाल रहे हैं,
तो मुझे किस "कीड़े" ने
काटा था कि मैं
'खानाबदोशी' में अपना गुज़रबसर करूँ...???
आज अपने उम्र के
इस 'पायदान' पर खड़ा होकर
मैं एक तमाशेबाज़-सा
बन चुका हूँ,
जो जबरदस्ती
खुद के 'खोखलेपन' में
बनावटी 'हँसी' का
खुराक भर रहा है...!
अरे, भाई! ये कलयुग है!!!
और मैं 'मूर्ख' सतयुगी बन
खुद के भविष्य का
'गुरगोबर' कर रहा हूँ...???
कैसा 'महामूर्ख' हूँ मैं
जो खुद ही
अपने हाथों से
अपने सुनहरे सपनों की
'कब्र' खोदते जा रहा हूँ...!!!
यहाँ सबको 'अपनी' फिक्र है
और मैं 'नासमझ'
बेफिक्री में अपने अरमानों की 'लाश' पर
तथाकथित 'त्याग-ओ-तपस्या' का
सफेद चादर चढ़ा रहा हूँ...!!!
सबसे बड़ी 'विडंबना' यही है कि
इस जद्दोजहद भरी
ज़िन्दगी के दो पहलू हैं --
एक तरफ 'वो जिनके पास' सब कुछ है
और दूसरे वो,
जो 'दिखावटी' समाजोद्धार का जामा पहनकर
खुद अपनी कामयाबी के
रास्ते में बाधा उत्पन्न कर...
अपना ही नुकसान
करते जा रहे हैं...!!!
अरे भाई! इस कलयुग में
सब गड़बड़-घोटाला है...
एक तरफ 'पावरप्ले',
तो दूसरी तरफ बस
शोषण, शोषण और शोषण...!!!
