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Shahid Kazi

Romance Fantasy

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Shahid Kazi

Romance Fantasy

हवाएं

हवाएं

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धीमी सी भीनी सी जो चल पड़ी है ये हवा

ना किसी मोड़ की इसे खबर ना मंज़िल का कोई पता।।

खुशबू एक सौंधी से लिपटके अपने साथ 

इस गहरी भीड़ में भी थी अलग उसमे कुछ बात।।


आँखों में थी जैसे अब एक अलग सी कशिश 

दिल में थी जगी एक नयी चाह एक नयी सी ख्वाइश।।

ढूंढ़ते चले हम जाने कैसी ये दीवानगी

ना था कोई इशारा बस वो महक ही पेचान थी।।


चूड़ियों की वो खनक उड़ते उन ज़ुल्फ़ों के साथ

सूरज के किरणोंसी खिलती उस हसी में थी कुछ तो बात।।

आँखों में एक मस्ती सी कर दे घायल जो दिल सभी

अदाओं में हुए जो गुम हुआ तो प्यार फिर अभी।।


देखा जो मुड़कर उस मुस्कराहट का क्या कहना

ना गम ना शिकवा उस पल में ही थामे था रहना।।

बीते कितने साल आज भी देख उन्हें रुक जाती सांस

थामा सालों पहले जो हाथ है आज भी उस प्यार का एहसास।। 


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