प्रमाण
प्रमाण
केवल प्रमाण-पत्रों के आधार पर ही
किसी 'निष्ठावान' शिक्षक की
क़ाबिलीयत का मूल्यांकन न करें...
ज़रा 'ईमान' से उस सेवक की
कर्मोत्साहित मनोभावों का भी
सही मूल्यांकन करने का प्रयास करें...!!
ये तो प्रचलित नियम है
कि एक शिक्षक का 'मूल्यांकन'
केवल तय की गई 'पारिश्रमिक'
तक ही आकर दम तोड़ देती है...
मगर ऐसे भी 'शिक्षक' हैं इस दुनिया में,
जो कभी 'पे रेगिस्टर' पर
बेमतलब 'माथापच्ची' कर
अपना कीमती वक्त कभी
'ज़ाया' नहीं करते,
बल्कि निरंतर अभ्यास एवं निष्ठा भाव से
अपना दायित्व निभाया करते हैं...
मगर विडंबना यह है कि
वो शिक्षक कभी अपने संस्था में
'खास' दर्ज़ा हासिल नहीं कर पाते...
क्योंकि 'ऊंचे ओहदों पर' विराजमान
निर्णय लेने वाले निर्धारित 'गुट' के
महानुभावों की 'सोच' वहीं
'कागज़ी प्रमाण-पत्रों तक ही
'सीमित' रह जातीं हैं...
ऐसा क्यों...?
क्या कर्मयोगी 'अनुभवी' शिक्षकों
का 'मूल्य'
तथाकथित कागज़ी प्रमाण-पत्रों की संख्याओं के आगे
कम पड़ जातीं है...???
