फ़क़ीरी...
फ़क़ीरी...
अमीरों को उनकी अमीरी मुबारक़,
हमें अपनी फ़क़ीरी ही प्यारी है...!
हमें ऊंचे ओहदों पर
आराम की ज़िन्दगी जीनेवालों से
कोई सरोकार नहीं,
क्योंकि उनके दावों और
वादों की
कोई क़ीमत नहीं !!!
वो तो यूँ ही
मुफलिसों को
ख्याली पुलाव खिला-खिलाकर
अब हक़ीक़त में
यक़ीन कर पाने की
सारी हदें
पार कर चुके हैं...!!!
उन तथाकथित अमीरों की
चाल-ढाल ही कुछ अलग है...!
वो तो अपनी कामयाबी के नशे में
अपने बेशुमार दौलत-ओ-शोहरत के सहारे
आसमान में उड़ते-फिरते हैं...!
और हम जैसे मुफलिसों की
गर्दिश-ए-ज़िन्दगी में
एक पल के लिए भी
झांक कर देखने तक की
फुरसत नहीं...!!!
उनकी मनमर्ज़ी के आगे
किसी मुफलिस की चलती नहीं...
वो तो अपने कलम के फैसलों पर ही किसी ईमानदार की
पूरी कायनात ही बदल कर रख देते हैं...
इसीलिए हम 'लकीर-के-फ़क़ीरों' को
अमीरी का नशा नहीं...
ऐसा फर्क क्यों...???
ऐसी हालत क्यों...???
