अहंकार
अहंकार
काम, क्रोध, मद, लोभ, सब,नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि,भजहुँ भजहिं जेहि संत।
(1)
अहंकार ना करिए प्राणी अहंकार से होगी हानि।
अहंकार में ना होना चूर अपने हो जाएंगे दूर।
(2)
अहंकार नारद के मन मे आया, रूप वानर का पाया।
स्वयंवर में हुई जगहंसाई तब विष्णुशरण में आया।
(3)
मनुष्य जन्म मिला है तुमको, मत गवाना अहं में इसको।
प्रभुभक्ति में तुम लग जाओ, अपना जीवन धन्य बनाओ।
(4)
अहंकार ही अहंकार है सब अपने मद में चूर है।
आज हर इंसान खुद अपने हाथों मजबूर है।
(5)
"मैं" ही हू सर्वज्ञानी समझता है हर प्राणी।
"मैं" से जब "हम" हो जाते विनम्र प्राणी हम कहलाते।
(6)
निर्मल मन में बसते श्रीराम , भज लो तुम हरि का नाम।
क्यों व्यर्थ जीवन गवाते हो, छल,कपट, अहंकार को अपनाते हो।
(8)
अहंकार ने सब कुछ छीना अहंकारी को ना आया जीना।
अपने लिए तो सब जीते दुसरो का दर्द समझे तो है जीना।
(9)
सुन्दर तन निर्मल काया ये सब है भगवान की माया।
धन वैभव की लालच में प्राणी तूने सब कुछ गवांया।
(10)
जप लेता जो तू हरि का नाम बन जाते तेरे बिगड़े काम।
विभीषन की तरह जो हरि शरण मे जाता सब कुछ तुझको मिल जाता।