अधूरे चांद की शाम।
अधूरे चांद की शाम।


आधे चाँद कि अधूरी शाम को
अब पूरी शाम करना चाहती हूँ
उस तुम्हारे अनछुए एहसास को अब
मैं तुम्हें छूकर पूरा करना चाहती हूँ
जो मेरे अनकहे जज़्बात है उन अनकहे
जज़्बात को कहकर पूरा करना चाहती हूँ
जिसकी हर पल बहुत याद आती है उसके
बिना गुजरती अधूरी शाम को उसके साथ
गुजार कर अब पूरी करना चाहती हूँ
आज भी कही दूर बजती घंटियों कि आवाज़
को अकेले सुनने का जो अधूरापन है
उन घंटियों की आवाज़ को तुम्हारे साथ
बैठ कर सुनना चाहती हूँ
वो मेरे साथ चलती तुम्हारी अकेली
परछाईं को
तुम्हारा हाथ थाम कर दोकली
करना चाहती हूँ
आधे चाँद कि अधूरी शाम को
अब पूरी शाम करना चाहती हूँ !