अद्भुत माया प्रेम की
अद्भुत माया प्रेम की
जानता अच्छी तरह से था,
कि तुम क्या हो।
मगर तुमसे मुहब्बत कर ही,
बैठा था तड़पना जो था।
नहीं दिल पर किसी का हुक्म,
चल पाया है सदियों से।
रहे जलते सदा इंसान घर,
अरमान है इससे।
किसी से नयन मिलते है,
किसी से प्यार है होता।
किसी की जान को लेकर,
किसी से ब्याह है होता।
ये अद्भुत प्रेम की गंगा,
लगाए इसमें जो गोता।
हाथ कुछ भी नहीं आता,
रहे वह उम्र भर रोता।
कई आकर मिटे इसमें,
कई ने सन्तुलन खोया।
निगाहें फेर ली जिसने,
शान्ति सम्मान धन पाया।
तिया की बात सुन तुलसी ने,
लौकिक प्रेम को त्यागा।
जोड़ ली राम से डोरी तो,
जग यह ब्रम्हमय लागा।