आया हूँ तेरी शरण
आया हूँ तेरी शरण
दुनिया को देखा बहुत मगर अपने को देख पाया हूँ
हूँ कौन कहां से आया हूँ इसको मैं जान न पाया हूँ
कब जाना और कहाँ जाना यह बात समझ ना पाता हूँ
होगा फिर मेरा पुनर्जन्म यह सोचकर मैं घबराता हूँ
कई जन्मों का हूँ यात्री फिर इस चक्कर में फँस आया हूँ
दुनिया को देखा बहुत मगर अपने को देख ना पाया हूँ
मैं किया हूँ पूजा-पाठ बहुत और धर्म-कर्म में रूचि मेरी
यह करते बीत गया जीवन पर लगता हुई बहुत देरी
मन को ना चैन मिला इससे और परम शांति ना पाया हूँ
दुनिया को देखा बहुत मगर अपने को देखना पाया हूँ
हे प्रभु ! तेरी शरण में आ अपने को धन्य समझता हूँ
पाता हूँ शांति इसी में मैं अब इधर-उधर ना भटकता हूँ
थक हार के आया तेरी शरण को अब अपनाया हूँ
दुनिया को देखा बहुत मगर अपने को देखना पाया हूँ।