आवारा
आवारा
आज आवारगी के ख्यालों में
एक अनजान पर नादान सा बेगानापन है दिलो दिमाग की गहराइयो में
यह नया सा एहसास मेरी दुनिया, मेरे वक़्त, मेरे हालातों से जुदा है,
जो अभी अभी मुझसे जुड़ा है
अब ख्वाबों में कितनी ही दफा मुड़ी है मेरी रूह तुम्हारी ओर,
ये पर्वत, नदी, नाले पार कर जुड़ा हूँ तुमसे,
झुका है मन तुम्हारी तरफ गफलत करने की आरज़ू में
रात दिन जहाँ भी हूँ, देखता जो भी हूँ
थे जो ये सभी मेरे अकेलेपन की दुर्बलता, मेरी विफलता
तेरे नाम के नगमे में खिल गए मेरे एकांत की सबलता महका गए, बन गए मेरी सफलता
बरसों पहले भूला संगीत, वो ताल, वो अदा
अब गुनगुना रहा हूँ होकर तुझ पर फ़िदा
मन अब चाहे कल्पना की गहराइयों में मग्न हो या खोखलेपन की बानगी हो
अंतःकरण में तेरी चेतना के चक्षु खोलने पर
मानस पटल पर,
जीवन की कठिन पगडण्डी में
नरगिस की फुलवारी से रास लेकर
अनुराग की स्याही घोल
खुशियों की कलम से
कलियों की तख्ती पर
उल्लास के परदे बेपर्दा हो
मुझे मुझ में ही लाज से समेटते हैं,
था कुंठा, रूठा इस जगत से
तेरी मौजूदगी के एहसास से अस्तित्व मेरा
आज़ादी, शक्ति, नैतिक संस्कारों की चांदनी में निखार गया है
घाटियों में अपनी चमक से ज़िंदादिली का प्रमाण दे रहा ये सूरज
आज सुंदरता की पराकाष्ठा को पार कर अनंत गहराईयों में समां रहा है
यह घनघोर चुप, यह मौन का ठौर कितनी राहत दे रहा है
यह बहती नदियों का कलरव,
यह शाश्वत भागता वक़्त,
यह निद्रा की गोद में मचलता घर और इधर
यह मेरा ठहरा हुआ सा दिल
कोलाहल के तराजू में सामंजस्य बिठाता
ख़ुशीयों से होड़ करता
तरुण सागर में बेपरवाही की गोत लगाता
यौवन की इस मधुर बेला में
कब आत्मसंशय की गलियां पहुँच गया
अब निराशा ओर पागलपन की पराकाष्ठा में
नाउम्मीदी की दहलीज पर खड़ा हूँ मैं आवारा
इंतज़ार में....