आतंकवाद
आतंकवाद
विवश हैं दहशत के साए में जीने को
लाचार हैं दर्द का हर विष पीने को,
विनाश की ये भयंकर ज्वलन्त लपटें
आतंकवाद तबाही की परिभाषा है समेटे।
स्वर्ग-सी धरती पर नर्क का अहसास होने लगा है
डर के दामन में इंसान अपना अस्तित्व खोने लगा है,
जिन्दगी की राहों में मौत की फैली जंजीरे हैं
आतंकवाद ने बदल दी खुशियों की तकदीरें हैं।
मुस्कुराहटों के माहौल में भी गमों का पहरा है
स्वतंत्रता के इंतज़ार में इंसानियत ठहरा है,
स्वप्न संजो रहा होने को ये जहाँ आबाद
मगर स्वतंत्रता की पीड़ा समझती कहां आतंकवाद।
अपनों और गैरों का भेद नहीं जानती गोलियां
पीड़ा, आँसू और विलाप की ये नहीं समझती बोलियाँ,
बसेरों को उजाड़ना ही एकमात्र इसका मकसद
अंधकार के गर्त में डूबी है इस कदर आतंकवाद।
