आरास़ता
आरास़ता
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ज़रा-सी बात हो ज़रा-सा दिल रोय,
चलो ज़िन्दगी फिर, आरास़ता हो जाये।
ग़म को क़ातिल न कहूं, मै को इल़ज़ाम न दूं,
चलो ये शाम फिर ,आरास़ता हो जाये।
ढलते-ढलते ही सही उजाले कुछ दे जाऐं,
क़या ख़बर दुनिया, आरास़ता हो जाये।
सो गया दफ़न करके सीने मे जब हर ग़म,
ऐ दिल तू अब तो, आरास़ता हो जाये।
कुछ ढूंढ़ कर लाओ मेरे किरदार मे कमियां,
जनाज़ा रिश़तों का ज़रा ,आरास़ता हो जाये।
गर पौंछ दूं आंसू गुरबत का दुनिया से,
मेरी क़बर भी शायद ,आरास़ता हो जाये।
मुख़ालिफ़ की दलीलों पे चुप हूं तो बस चुप हूं,
चलो झूट भी कभी, आरास़ता हो जाये।
मेरी गज़लों की इमारत अब जावेदा खड़ी है,
कोई तोहमद लगाओ तो ,आरास़ता हो जाये।