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Bhavna Thaker

Tragedy

4  

Bhavna Thaker

Tragedy

आँखें नम हुई

आँखें नम हुई

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बहुत समय बाद आज आँखें नम हुई है

मेरी हथेलियों को तराशा है बहुत तुम्हारी खुदगर्ज़ी ने..!

 वर्जित था अश्कों का बहना मज़दूर के हक में

लिखी कहाँ खुदा ने शिकायतों की संभावना..!

 

तुम लूटते रहे मेरी मजबूरियों का खजाना 

टुकड़ा रोटी का पाने मैं पसीजता रहा बूँद बूँद..!

 ए बड़ी शख़्सीयत है तो तू भी उस खुदा का ही बनाया खिलौना,

फिर फ़र्क क्यूँ हम दोनों के सीने में इतना..!


मैं शराफ़त और संवेदनाओं का सरमाया तू क्यूँ निर्मम,

निर्दयी, कपटी तेरी आराध्या सिर्फ़ माया..!

देख रहा है उपर वाला तुम्हारी बेरुख़ी, उसकी नज़रों से

छुपा नहीं तेरी दहशतगर्दी का तमाशा..!

 

मेरे तन की सिलवटों ने सिकुड़ते मेहनत की तुरपाई से जोड़ा

तेरे घर को तूने मेरी पेट की आग को भी न छोड़ा..!

वक्त के कमीनेपन ने तुझे भी अपने जैसा बनाया,

सालों की मेरी नमकहलाली ने भी तेरे मन को ना पिघलाया..!


लकीरों का तू धनी सही यूँ न इतरा हिसाब सबका होता है उस चौखट पर,

क्या तू क्या मैं भूल मत हम दोनों का सिर्फ़ दो गज ज़मीन है सरमाया।


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