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Phool Singh

Comedy Romance Crime

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Phool Singh

Comedy Romance Crime

आँख का आँसू बोल पडा़

आँख का आँसू बोल पडा़

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कब तक रोकता खुद को 

आखिर में वो छल्क पड़ा 

अन्तर्मन में उठे भाव को 

प्रदर्शित सबको कर ही गया।


 नैन का मोती जल की बूंद बन

 वक़्त पर अपने छल्क पड़ा 

रोक सके ना फ़लक भी उसको 

प्रकट विरह को कर ही गया।


तंग आकार कभी हालात से 

अश्कों संग ये बह ही गया 

नायाब तोफ़हा बन खुदा का 

भावनाए वयक्त वो कर ही गया।


खुद गर्जी में छ्लका कभी 

तकलीफ का हिस्सा बन गया 

चुप रहता वो कब तक बोलों 

बन आँख का आसूं बोल पड़ा।


हसरत पूरी नहीं हुई तो 

ख्वाब की रंगत बन चला 

जागीर बन वो अन्तर्मन की 

मुस्कान के संग भी बह चला,

बन आँख का आँसू बोल पड़ा।


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