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Raashi Shah

Classics

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Raashi Shah

Classics

आज़ादी

आज़ादी

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भारत जैसा समृद्ध राष्ट्र​,

एक मर्तबा, था अंग्रेज़ों की पकड़ में,

हो गया था जैसे, स्वतंत्रता से अपरिचित​,

लोग घुत​-घुटकर जी रहे थे,

अपने ही वतन में।


लेकिन हो ग​ए थे हम​,

१९४७ में आज़ाद​,

फिर भी न बदली

क​ई भारतीयों की सोच​,

ऐसी सोच​,

को सक्षम है करने में,

यह बहुमूल्य आज़ादी बर्बाद​।


सोच ​! जो भारत को एक स्वतंत्र

मुल्क होने के उपरांत भी,

असली मायने में,

स्वतंत्रता प्राप्ति से,

वंचित रखती है।


सोच ​! जो भारत की

प्रगति के मार्ग में,

बाधा बने खड़ी है,

ऐसी सोच​,

जो ना खुद बदलना चाहती है,

ना किसी को बदलने देती है।


जो देखे-दिखाए उपयोगों

तथा सोच के पिंजरे में,

बंद रहती है,

और बुलंद सोच के

पंख लगाकर उड़ना,

जानती ही नहीं है।


लेकिन है हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के,

ज़िम्मेदार नागरिक​,

और हमारा संविधान हमसे ये माँगता है,

नया दौर है ये इक्कीसवी सदी,

खुली सोच लेकर हम जीयेंगे,

एकता, समानता, निष्पक्षता।


ऐसी सोच लेकर हम आगे बढ़ेंगे,

सबको समान अधिकार मिलेंगे,

सबका हम सम्मान करेंगे,

भारत का उज्ज्वल भविष्य बनेंगे।


प्रगति के मार्ग पर​, इसे मार्गदर्शित करेंगे,

एकजूट होकर हम आगे बढ़ेंगे,

समस्त पक्षपात की दीवारों को हम तोड़ेंगे,

तिरंगा लहराएगा हमारा शान से,

जब हम सच में आजाद होंगे।


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