गुलामी की जंजीरे तोड़ों
गुलामी की जंजीरे तोड़ों
ना इन जंजीरों के,
बंधन में खुद को पालो,
करो साहस,
और,
इन जंजीरों को,
तोड़ डालो,
जंजीरे अक्सर,
जकड़,
मानव को लेती हैं,
हाथ से हाथ मिलाओ,
और कारवां बनाते जाओ,
जब बढ़ जाए,
यहां हाथों का कारवां,
देकर हिम्मत,
एक दूजे को,
बंधनों से,
खुद को,
मुक्त कर जाओ,
हालात,
और,
समय चक्र भी,
बुनता है,
जंजीरों का जाल,
समझ बूझ,
और,
कर्तव्य का निर्वाह कर,
परतंत्रता की सोच से,
खुद को,
मुक्त कर जाओ,
स्वदेशी अपनाएंगे,
स्वदेशी अपनाओ,
ना किसी भी,
पराए देश का,
वर्चस्व,
अपने देश में बढ़ाओ,
यह भी तो,
एक तरह की,
जंजीर ही है,
तोड डालो,
इन जंजीरों को,
और,
खुद को,
पराधीन होने से बचाओ,
मजबूर नहीं,
मजबूत बनो,
सुद्रढ देश की,
अर्थव्यवस्था को बनाओ,
अपनों को नहीं,
विदेशी ताकतों की,
अर्थव्यवस्था की,
रीढ़ कमजोर कर ,
बढती ईमारतो,
की तरक्की की
रीढ़ तोड़ जाओ,
ना कोई,
आंख उठा कर,
देखने पाए,
अपने मन मस्तिष्क को,
दृढ़ इस कदर बनाओ,
पराआधीन,
ना फिर,
हमारी सोच होने पाए,ः
इंकलाब का नारा,
पूरे जोर से लगाओ,
टूटी हुई,
जंजीरों को,
पिघलाकर,
हर तरफ,
एक नया,
लोहपुरुष बनाओ,
लोहा अपना मनवा कर,
जगत में,
इस तन और मन,
दोनों को ही,
जंजीरों से मुक्त कर जाओ,
साहस करो,
और अपने पैरों पर,
खड़े होकर,
तो दिखलाओ,
पैरों पर खड़े,
होकर,
तो दिखलाओ
तोड़ पुरानी,
गुलामी की जंजीरों,
को,
तुम,
मन और तन से,
गुलामी से
मुक्त हो जाओ।
