आई याद
आई याद
आज व्यथा से चूर हुई थी,
भरा भरा सा था मन मेरा,
दूर कहीं थी दृष्टि गड़ाए ,
सहसा आंखें भर आईं।
याद आई मेरी प्रिय ‘डैशी’
जो गई दूर छोड़ मुझे थी,
मन कैसा तो हो आया,
अँधेरा सा घिर आया।
सूरज आसमान में चमका था,
धूप सुनहरी फैली थी,
पर इधर न ध्यान मेरा था,
दृष्टि दूर ही अटकी थी।
अश्रु बिन्दु ढलके ढलके थे
आंखें भरी-भरी थीं ,
मैंने हल्की आंखें झॉंपीं
अश्रुओं को गिरने से रोका।
पर लो यह कैसा क्या
मेरी आंखों में आया,
सतरंगी सूरज की किरणें,
मेरे अश्रुओं में झलकीं।
सूरज का सन्देश सुनहरा,
मुझ तक पहुँचाया किरणों ने,
पीड़ा कभी व्यर्थ नहीं होती,
स्मृति सुरक्षित रहती है।
धीरज तो धरना पड़ता है,
हँस-हँस जीना पड़ता है,
यही राज है जीवन का,
जो है उसे स्वीकार करने का।
दुःख अपने सब दूर होंगे,
जब जग की पीड़ा भर लोगे,
सागर से विशाल बनकर,
हलाहल पान कर लोगे।