आई रूह बनकर
आई रूह बनकर
रात के सुबह नहीं आई
वो गया बस चला गया
फिर कभी न आने को
उम्र ढल गयी वो आया नहीं।।
जीवन के न जाने क्या पहलू थे
क्या था उसके मन में
कुछ नहीं पता मुझको
बस लेटा और लेटा रह गया।।
वो रात का समय समय रह गया
मैं आंखों को मूदा मूदा रह गया
वो तब आया रूह बनकर
जब मैं भी रूह बन गया।।