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Mahima Bhatnagar

Abstract Drama

0.6  

Mahima Bhatnagar

Abstract Drama

थोड़ा सा झूठ

थोड़ा सा झूठ

2 mins
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"काव्या दीदी..आप ही बताइये..मैं क्या करूँ? कल घर पहुंचने मे थोड़ी देर हो गयीं तो अम्मा कितनी नाराज थी....बारिश की वजह से ट्रैफिक जाम था। मेरे हाथ मे थोड़े ही था जल्दी आना..." कनु ने अपनी ननद काव्या से सास की शिकायत करते हुए कहा।

"अरे भाभी, अम्मा नाराज नहीं, चिन्तित होगी...आपमें तो जान बसती है उनकी। बारिश मे आपका पैर उपर-नीचे ना पड़ जाये, यही सोच कर परेशान हो रही होंगी। उन्हें फोन कर दिया करो कैब मे बैठते ही ...." काव्या ने अपनी भाभी को समझाते हुए कहा।

"बड़ी किस्मत वाली हो अम्मा, आप पर भाभी को बहुत भरोसा है। कह रही थी, अम्मा जी की वजह से निश्चित रहती हूँ, घर की चिंता कम हो जाती है। कुछ दिनों मे खर्चे बढ़ने वाले हैं.... जब तक सधे नौकरी कर लेती हूँ फिर तो घर बच्चा सब संभालना ही है मुझे..."

"सही तो है अम्मा... आजकल तो डॉक्टर भी ज्यादा आराम को मना करते हैं, वैसे भी चार पैसे आयेंगे तो भैया को सहारा ही होगा... ऐसी अवस्था मे इतना काम करती हैं, शाम तक थक जाती होगी। जितनी भाभी खुश रहेंगी उतना स्वस्थ बच्चा होगा.." काव्या ने माँ के मन को भी सहेजा।

"काव्या दीदी.... मैंने कितना गलत समझा था अम्मा को.. कल आफिस से निकलते हुये फोन कर दिया था, घर पहुंची तो गर्मागर्म चाय तैयार थी। सच मे,आप सही थी,अम्मा को चिंता हो जाती हैं ... मेरी मम्मी भी ऐसे ही परेशान हो जाती थी...." उत्साहित भाभी ने काव्या को बताया।

"हाँ काव्या...शाम आने से पहले बहू ने फोन कर दिया था तो सोचा चाय ही बना लूँ...थक के आयेगीं, सब्जी ही काट दूँ। पता हैं.. तेरी भाभी ने कल रात गर्म गर्म रोटियाँ खिलाई बिल्कुल तेरी तरह प्यार से...." माँ ने भी काव्या से अपनी खुशी जाहिर कर दी।

संतुष्ट काव्या, अम्मा और भाभी के बीच पिघलती बर्फ को साफ साफ महसूस कर रही थीं!


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