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Mahima Bhatnagar

Drama

4  

Mahima Bhatnagar

Drama

असुरक्षा की भावना

असुरक्षा की भावना

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"शांति.... तू रात को जल्दी आ जाना। अम्मा के कमरे में ही सोना। मोटी चादर निकाल दूंगी तो AC में ठंड नही लगेगी... बस... दो दिन में आ जाऊँगी, मम्मा पापा से मिल कर। साल भर से ऊपर हो गया, नहीं जा पायी...." पैंतालीस वर्षीय प्रतिमा इस उम्र में भी मायके जाने के लिए उतावली हो रही थी।


"मेरी पैर दर्द में लगाने वाली ट्यूब कहाँ है?" अम्मा भुनभनाती घूम रही थी।


"वहीं होगी, अम्मा..." शांति ने शांति से कहा।


"यहाँ नहीं हैं, तू ले गई होगी..." सीधा आरोप लगा शांति पर।


"क्या अम्मा जी, वैसे ही पता नहीं कौनसे कर्म काट रही हूँ, जानते बूझते नये कर्म अपने सर ना लूँगी... चलिये मै ढूंढती हूँ।" शांति ने शांति बनाये रखने की कोशिश की।


"प्रतिमा... तुमने बहुत सर चढ़ा रखा है इसे, क्या जरुरत थी महात्मन् बनने की, दवा लगाने की... और करो विश्वास... देखो, हाथ ही साफ कर गयी। तुम इसके भरोसे घर नहीं छोड़ कर जा सकती..." अम्मा गुस्से में बेकाबू हुए जा रही थी।


"अम्मा शांत हो जाइये... आप स्प्रे लगा लिजिए... दूसरी ट्यूब ले आयेंगे..." प्रतिमा ने बीचबचाव करते हुये कहा।


"अरे, पैसे की कद्र तुम क्या जानो... कैसे कमाया जाता है..."


तभी कचरे वाला आया...

"मैम... ये नया टूथपेस्ट आपने फैंक दिया, मै ले जाता हूँ। आप पर्ची बना दिजिए, नहीं तो गार्ड रोक लेगा।"


"भईया... देखो क्या है इसमे... ये खाली डिब्बा होगा, पेस्ट तो अम्मा ने कल ही खोल लिया था, है ना अम्मा।"


"ओह... ये तो कोई दर्द वाली ट्यूब है मैम..." वो मायूसी से बोला।


"चलो... चलो... जाओ यहाँ से.... चौखट पे पंचायत लगाये हो सारे मिल कर..." निगाहें चुराती अम्मा सबको हड़काते हुए बोली!!!!


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