करे कोई, भरे कोई

करे कोई, भरे कोई

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"माँ...माँ..कुछ करो ना माँ..." उसने छटपटाते हुए तेजी से हाथ पाँव पटके। उसे अपनी सांस घुटती सी लग रही थी।

"सोमेश..जल्दी करो, कुछ ज्यादा ही घबराहट हो रही है।" अपने अजन्मे बच्चे की आकुलता नीना को भी आकुल कर रही थी।

"हाँ..नीना.. बस कुछ देर और ....थोड़ी हिम्मत से काम लो। बाहर कितना स्मोग.... मतलब घना कोहरा है....गाड़ी चलाने मे मुश्किल आ रही है। नीना...गहरी गहरी सांस लो।" घबराहट से सोमेश के भी हाँथ पाँव फूल रहे थे।

"सोमेश....मै सांस ही तो नही ले पा रही हूँ...जल्दी करो।"

वो असहाय शिशु परेशान था कि अब उसका क्या होगा ? समय रहते पापा नही संभले। माँ रोज कहती थी....कारखाना जहर उगल रहा है, आसपास के लोग शिकायत करते हैं। ये जगह बिमारियों का अड्डा बन रही है पर उसके पापा अपनी कमाई में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने कारखाने की गुणवत्ता की कभी कोई सुध ही नही ली। जो जैसा चल रहा है वैसे ही चलता रहा... कारखाने के मानक गलत होने पर घूस खिला कर काम चल जाता था।

वो मासूम अपने ही पापा के फैलाये चक्रव्यूह में फंस गया था। इस दमघोंटू माहौल में वो ज्यादा देर नहीं रह सकता...माँ...माँ.....और उसकी चेतना लुप्त हो गयी।

आँख खुलने पर उसने खुद को एक छोटे से, गर्म नर्म से, आरामदायक माहौल में पाया जहाँ वो चैन की सांस ले सकता था।

चलो...उस नारकीय यंत्रणा से उसे मुक्ति मिली ...वो नन्ही जान कुछ सुकून में आयी तभी नर्स इंक्यूबेटर के पास उसके माँ पापा को लायी।

ये क्या...उसे देख कर माँ खुश होने के बजाय फूट फूट कर रो रही थी...लगता है वो जीवन की जंग जीत कर भी हार गया.... विषैली हवा उसके अस्तित्व पर अपनी निशानियां छोड़ गयीं थी जो ताउम्र उसके साथ रहने वाली थी !


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