खुशी
खुशी
"कैसी हो रानू ?"
"अरे बहुत व्यस्त। समय का पता ही नहीं चलता, कुछ ना कुछ चलता ही रहता हैं यहाँ, क्लासेस खत्म होती हैं फिर हमारी गोष्ठियां। क्या बताऊँ मम्मी।" चहकती आवाज मे जवाब आया।
यह सब सुन कर कविता के सीने में ठंडक पड़ती जा रही थीं। उसे याद आने लगा
निस्तेज चेहरे और भावशून्य आँखों के साथ इंजीनियरिंग नहीं करने को अडिग रानू से कविता कितनी नाराज थी
बेवकूफ लड़की, इतनी अच्छी ब्रांच छोड़ता है कोई
लोग क्या कहेगें ? भविष्य बिगाड़ रही है अपना नासमझी में।
अरेहमें कौन तेरी कमाई की रोटी खानी है, समझती क्यों नहीं,वगैरह वगैरह।
आज आत्मविश्वास से लवरेज, अपने आप से संतुष्ट रानू कितनी खुश थी। आज रानू अगर कविता की जिद पूरी कर रही होती तो क्या इतनी ही जोश में होती या निरुत्साहित सी मशीन बन गयीं होती।विषाद से घिरी अगर कुछ कर लेती तो ? कविता पसीने पसीने हो गयी।
अच्छा हुआ समय रहते कविता समझ गयी कि सभी का व्यक्तित्व अलग अलग होता हैं, रुचियाँ अलग अलग होती है। अपने जीवन की राह स्वयं चुनने का हक होना चाहिए, तभी स्वयं के साथ दूसरों को भी खुशी बांट पाते हैं।
