जन्नत
जन्नत
नये घर में पहुंच कर सब घर लगाने में व्यस्त थे। वृद्धा सलमा को कोई जल्दी नहीं थी। आराम से हो जायेगा, है ही कितना सामान उन दोनों का ?
"बड़ी दादी...लाईये आपका हाथ बँटा दूँ। " बातूनी रज्जो बोलते हुये कमरे मेंं आयी।
"अरे आप रो क्यों रही है ?"
"किसकी तस्वीर है ये ?"
"कौन हैं ये बच्चे ?"
"अब्बू हैं क्या ?"
"साथ में कौन है ?"
पोपले मुँह से हँसते हुये सलमा बोली...
"रूक जा बच्चे.... साँस तो ले ले, यह हमारी तस्वीर हैं....मेंरे साथ तुम्हारे अब्बू के दादू हैं। जब हम गांव से मुम्बई घूमने गये थे ,वहां यह फोटो ली थी..."
"पर आप रो क्यों रही थीं, बड़े दादू आपसे लड़ते थे क्या ?"
"ना बेटा...हम तो कभी नहीं लड़े। बहुत प्यार है हममें तो...वो तो पुरानी बातें याद आ गई तो आँख भर आयी... इतना भरा पूरा परिवार था, सब अपने अपने में लग गए। अब तो चलाचली का समय हैं , पता नहीं कितना जीवन बचा है। किसी से कभी मिलना हो भी पायेगा या नहीं..."
"बड़ी दादी... अब्बू अम्मी तो खूब लड़ते है। आप दोनों क्यों नहीं लड़ते थे ... वो बड़े थे तो आप पर गुस्सा करते होगें...है ना"
"अरे नहीं.... मै छोटी थी ना.. लड़ती कैसे। 12 साल की थी जब निकाह हो गया था। वो तो मुझे दुनिया भर की कहानियां सुनाते थे, स्कूल में भी खूब ध्यान रखते थे।
मैं भी उनका खूब ध्यान रखती थी जैसे उनसे बड़ी हूँ कोई। उनका गृहकार्य भी कर देती थीं, बस्ता भी लगा देती थीं। ये कभी पेड़ से आम तोड़ लाते थे या बाजार से कापी पेंसिल ले आते थे....."
सलमा बचपन की बातों में खो गई।
"अब्बू ...अब्बू ...अपने नये घर की दावत में आपके साउदी वाले मामू भी आयेंगे ना..मेंरी खाला को भी जरूर आने को बोलिए ।अब्बू आप सुन रहे है ना..."रज्जो बैचेन घूम रही थी।
आखिर दावत के दो चार दिन पहले तकरीबन सभी रिश्तेदार आ गये। दोनों बुजुर्ग अपने भाई बहन, बच्चों, नाती पोतों से मिल कर बेहद खुश थे। खूब बचपन की बातें होती, देर रात तक किस्सागोई चलती, ठहाके लगते...सबसे ज्यादा रज्जो खुश थीं क्योंकि उसकी बड़ी दादी दादू खुश थे।
दावत से एक दिन पहले सभी काफी उत्साहित थे। सलमा हैरान थी की बात क्या है...कुछ तो हैं जो उसे समझ नहीं आ रहा? कौन बतायेगा? रज्जो भी कटी कटी है...छोटी बेटी शाम को गोटा लगी पोशाक ले कर आयी..."अम्मी ये पहन लो, खूब जचेगी आप पर..."
"अरे देखिये ना..अब्बू भी अच्छे से तैयार हुए है...नया जोड़ा, टोपी... आप भी बता दिजिये, आज भी आप में वो ही दम हैं...."बड़ी बहू ने मना ही लिया सलमा को।
"बड़े कमरे में है सब, वहीं चलते हैं...आज तो रात भर नाच गाने होंगे। खूब मस्ती होगी, कितने सालों में मिले है सब......"
सलमा के वहाँ पहुँचते ही पुराना गाना चल पड़ा।
"बहारों फूल बरसाओ, मेंरा महबूब आया हैं...."
"शादी की पिचहत्तरवी सालगिरह मुबारक हो सलमा...."
"ओहो... मुझे तो याद ही नहीं था.." अचरज में डूबी सलमा की आँखें खुशी से भर आयी। अपने निकाह का वक्त याद आ गया। इस समय, परिवार के साथ मानो सलमा जन्नत की सैर पर निकली हो। खुशी का पारावार न था।
" अम्मी...ये सब रज्जो की कारगुजारी है...यही सबको फोन कर रही थी...ऐसे करेंगे ,ये होगा... बड़ी दादी को खबर नहीं होनी चाहिए......."रज्जो के दादू अपनी अम्मा को हुलसकर बोले। उसकी चौथी पीढी भी उससे इतनी मोहब्बत करती हैं। भावुक हो कर सलमा ने रज्जो को गले से लगा लिया और दुआएं से उसे भीगो डाला।
"दादी....दादी...चलिये ना..
आपकी फोटो "रिक्रिएट" करते हैं। आजकल यह बहुत होता हैं.... बचपन वाले पोस में ही बड़े होकर फोटोज लेते हैं...मुझे FB पर अपने दोस्तों को दिखानी हैं....आप दोनों वो ही मुम्बई वाला पोस दो ...