मेरी अपनी आत्मकथा
मेरी अपनी आत्मकथा
जिन्दगी संघर्षों की यात्रा है।या यों कह लें जिन्दगी के गाने में प्रयुक्त होने वाली यही अन्तरा है।
बात उन दिनों की है जब मैट्रीक परीक्षा के समर में उतरने के लिए ये योद्धा सज्य था।पूरे प्रश्नों को हल करने वाली ढाल से सुशोभित था।एक अजीब ही जुनून था उसे समय इस बन्दे में कि इस बार मैं प्रथम आऊँगा और संभवतः पूरे गिरिडीह जिला में टाॅप करूँगा,और आप सब भी जानते हैं कि आपका आत्मविश्वास आपका सबसे प्रबल साथी होता है।समस्या जिस विषय की थी उसके लिए श्री जयदेव प्रसाद सिन्हा सर जैसे द्रोणाचार्य के समान ही गुरु मुझको गणित और विज्ञान हेतु मिल चुके थे ,तो कोई समस्या की बात ही नहीं थी ।पर हम सभी जानते हैं कि" होई वही जो विधि रची राखा।"ये कथा सन् 2000 ईस्वी के समय की है।
यहाँ पर अपने जुनून की एक कहानी बतलाना मैं भूल गया कि किस प्रकार बड़ों की बात न मानना आपको विनाश की ओर धकेलती है ।उस समय जनवरी का महीना था यानि की मकर संक्रान्ति का समय।पापा को शुम्भेश्वरनाथ में खिचड़ी का प्रसाद अर्पित करने के लिए गाँव आना था।जाने से पहले पापा ने कहा था कि तुम्हें सर्दी व जुकाम है।तुम आज ट्यूशन नहीं जाओगे ।पर मैं कहाँ मानने वाला था मैं गया रास्ते में भींग भी गया जब सर के यहाँ पहुँचा तो सर ने कहा बेटा तुम भीग गये हो ,बारिश उस समय तक थम चुकी थी तुम आज घर चले जाओ पहले ये लो तौलिए से अपना सर अच्छी तरह से पोंछ लो।पर मैं कहाँ मानने वाला था उस दिन टेस्ट जो था और बन्दे ने दमदार तैयारी कर रखी थी ,इसलिए मेरे जिद के सामने सर को हारना पड़ा और यकीन मानिए बहुत ही अच्छा नंबर आया था मेरा। ट्यूशन टाईम आॅवर हुआ तो जब मैं अपने घर पहुँचा,तो मुझे हल्की बुखार आ गई।बस मुझे इतना ही याद है पापा जब लौट के आए तो पापा के बाहर से आवाज लगाने पर ताला मैंने ही खोला।
उसके बाद एक झंझावात आया मेरे जीवन में ।मुझको बस इतना ही स्मरण है कि मुझको साधारण सी सर्दी जुकाम और बुखार हुई थी और इस स्थिति में सामान्यत:हमलोग जैसा करते आए हैं गिरिडीह में उस समय एक लाल होमियो हाॅल था वहाँ से मेडीसिन मेरे लिए ली गयी और उस मेडीसिन का मुझपर ऐसा असर पड़ा कि मैं मामूली सर्दी जुकाम से पीड़ित था अब में सेरिब्रल मलेरिया का शिकार हो गया ।
उसके बाद मुझको अफरातफरी में सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहाँ से डाक्टर ने मुझको बोकारो जेनरल हाॅस्पीटल बी.जी.एच.रेफर कर दिया गया।
उसके बाद का मुझको पता नहीं क्योंकि घर वालों ने बताया कि मैं कोमा में लगभग एक महीने रहा संभवतः मेरी आँख जब खुली तो मैं अपने घर आ चुका था एक बेजान शरीर लेकर क्योंकि नीचे का सम्पूर्ण हिस्सा मेरा लकवाग्रस्त हो चुका था।पर इस स्थिति में भी डाॅक्टर से पूछा था डाक्टर साहब मेरी मैट्रीक की परीक्षा है और मैं इसे देना चाहूँगा ।डाक्टर ने कहा कमाल के इन्सान हो यार तुम उठने तक की स्थिति में नहीं हो और परीक्षा देना चाहते हो।पर मैं एक अजीब किस का प्राणी हूँ ?मैंने हाँ में जब उत्तर दिया तो डाॅक्टर ने भी मेरी तारीफ की और कहा ठीक है पहले तुमको इसके लिए अपने पैर पर खड़ा होना होगा।
और उस रात को एस.पी..तेजस्विनी जोशी से प्रेरित होकर मैंने भी एक नया इतिहास रच डाला था और जैसा कहा जाता है न दोस्तों एक सच्चे हौसले के सामने पहाड़ को भी पिघलना होता है मैं उठा और अपने पैरों पर खड़ा हो गया ।