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आत्मग्लानि

आत्मग्लानि

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क्या कर रही हो, आपको समझ में नहीं आता, कितनी बार समझाया है, एक जगह बैठे रहो जो चाहिए, हम लाकर देंगे। फिर भी आपको समझ में नहीं आता है। आप मेरा काम बढ़ा देती हो। एक जगह बैठे क्यो नही रहती हो। रमा ने लगभग चीखते हुए अपनी सास से कहां। 

रमा की सास उसके साथ रहती है । वह बहुत बूढ़ी है। और कोई काम ढंग से नहीं कर पाती। मगर उन्हें लगता है , रमा अकेली सब काम कर रही है। तो कोशिश करती हैं, कुछ नही तो अपना खुद का ही काम कर ले , आज वही कर रही थी, कि गिलास भरकर पानी गिर गया, रमा का चिल्लाना सुनकर वह चुपचाप आकर अपने पलंग पर आकर बैठ गयी।

यह बात रमा का 12 वर्षीय बेटा भी सुन रहा था। कुछ देर बाद फिर कुछ गिरने की आवाज आई। रमा बाहर आयी तो देखती क्या है। सास के हाथ से फल की प्लेट गिर गयी है।और उसका बेटा सास से कह रहा है। दादी आप एक जगह क्यो नही बैठी रहती आप बिलकुल नही सुनती हो ।

चटाक से एक चांटा बेटे के गाल पर पड़ता है। रमा कहती है। तुम्हें तमीज है, बड़ों से कैसे बात की जाती है कैसी बात कर रहे हो दादी के साथ। ये है तुम्हारे संस्कार। तो बेटा रोते हुए कहता है, आप भी तो दादी से यही कहती हो और चल जाता है। रमा आत्मग्लानि से भर जाती है।


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