Nandini Upadhyay

Abstract

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Nandini Upadhyay

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मेरे अंदर की लड़की

मेरे अंदर की लड़की

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मेरे अंदर की लड़की 

तुम मेरे साथ यूँही चलना यूँही बैठना, हम ढेरो बातें करेंगे पर मैं तुम्हे दुनियां के सामने नहीं ला सकता, तुम जब तक मेरे साथ, इस तरह रहोगी तब तक किसी को कोई परेशानी नहीं है, परेशानी तो तुम्हे बाहर लाने में है। 

ऐसा नहीं है की मैंने तुम्हें बाहर लाने की कोशिश नहीं की, कई बार किया,पर हर बार वही सब बातें जो दिल चीर कर रख देती है।

कभी माँ द्वारा, कभी बाबा द्वारा, तो कभी मेरे दोस्तों, रिस्तेदारो, दुनियां द्वारा, तुम्हें बाहर लाने नहीं दिया गया उल्टा मेरा ही मखौल उड़ाया गया।

दुनियां तो पराई है, पर माँ बाबा तो मेरे अपने है पर वो भी नहीं समझते मेरे दिल की बात। मेरी खुशी किस चीज में है क्या वे ये नहीं जानते या जानने की कोशिश ही नहीं करते।

वह दिन अच्छे से याद है जब मैं तुम्हे बाहर ले ही आया था, सूट पहन कर, कानो में बड़े बड़े झुमके, होंठो पर लिपिस्टिक , आंखों में काजल, माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी, कितनी अच्छी लग रही थीं मैं, पर उस दिन बाबा ने डंडे से जो पिटाई की उसके निशान अभी तक है।

उसके बाद तो मैं तुम्हे कभी बाहर ला ही नहीं पाया। "मेरे अंदर की लड़की, तुम्हे मैं बाहर ला भी पाऊंगा या नहीं यह मैं नहीं जानता तब तक यूँ ही परछाई बनकर मेरे साथ रहो।


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