मधु अब बेचारी नही

मधु अब बेचारी नही

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    मधु के कानों में लोगों की आवाज सुनाई दे रही थी । अब बेचारी क्या करेगी । जवानी में ही विधवा हो गई। कोई सहारा नही बचा । दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। कहां जाएगी सास ससुर तो पहले ही नहीं थे ,अब पति भी चला गया । इतनी महंगाई के जमाने मे कौन , इन्हें रखेगा ,खाने के लाले पड़ जाएंगे इनके । 

      

मधु करे भी क्या करें , ये आवाज न चाहते हुए भी उसे सुनाई दे रही थी , आज बामुश्किल बारह दिन तो हुए है राकेश को गये और लोगो ने बातें बनाना चालू कर दी ।

    

आज से 12 दिन पहले उसका सब कुछ तो लुट गया। "खबर" हाँ बस एक खबर ही तो आई थी । राकेश को हार्ट अटैक आ गया है । काम के सिलसिले में बाहर गए थे । रास्ते में ही अटैक आ गया । अच्छी लाइफ स्टाइल थी उनकी ,फिर समझ में नहीं आया आखिर हुआ क्या । हॉस्पिटल तक भी नहीं पहुंच पाए , रास्ते मे ही दम तोड़ दिया ,और पीछे छोड़ गए मधु और दो बच्चों को ।


    8 साल पहले की तो बात है दुल्हन बन कर आई थी इस घर में । इतनी अच्छी सासु माँ और प्यार करने वाला पति । मधु को किसी चीज की कमी नहीं थी पति हाथों में ही रखते थे । कभी बाहर निकलने ही नहीं दिया । कुछ भी नहीं करने दिया । हमेशा यह कहते थे मैं हूं ना । तो तुम्हें जाने की क्या जरूरत है । तुम क्या करोगी बाहर जकर मैं हूं ना । तुम्हें किस चीज की कमी है बताओ मैं अभी लाकर देता हूँ । कभी नौकरी करने को कहती तो यह जवाब रहता ,क्या है ये मधु आराम से मिल रहा है तो रहो ना यार घर में क्यों बाहर निकलना है तुम्हें । तुम नहीं जानती जमाना कितना जालिम है और तुम भोली भाली , तुम्हें तो कोई भी बेवकूफ बना देगा । कहीं बाहर निकलने का मौका ही नहीं मिला मधु को । शादी के 5 साल बाद सासु मां का भी परलोक गमन हो गया । मधु बेचारी अकेली रह गई । तब तक मधु की गोदी में दो बच्चे सोनी और राजू आ चुके थे । उनके जाने बाद तो मधु की सारी दुनिया बच्चों ,पति और घर में ही सिमट गयी । पैसे की कोई कमी नहीं थी । मधु ने सोचा ही नहीं कि कभी उसका भी बैंक में अकाउंट हो । या कुछ बचत करके रखु ।जितनी जरूरत पड़ती राकेश से मांग लेती और राकेश भी उसे ज्यादा ही पैसे देता था । इसलिए उसने कभी सोचा ही नहीं कि पैसे सम्भालकर रखे या कोई अकाउंट बनाये ।

      

      राकेश कॉन्ट्रेक्टर था सिंह साब उसके पार्टनर थे । सब कुछ अच्छा चल रहा था । मगर यह हो गया । मधु की तो सारी दुनिया ही लुट गई । वह क्या करें उसके पास कुछ पैसा भी नही था, राकेश के क्रिया कर्म के पैसे सिंह साहब ने ही दिए थे ।बाकी ब्राह्मण भोज भी सब उन्होंने ही किया था । कुछ कागजों पर मधु के साइन भी लिए थे । तेरह दिन बाद सब मेहमान चले गए । लगभग 2 महीने उसकी मां रही साथ में । फिर वह मधु और बच्चों को अपने साथ ले गई । उन्हें पता था मधु के पास अभी कुछ भी पैसा नहीं है । इन 2 महीनों में मधु ने देखा राकेश के अकाउंट मे तीन लाख रुपये हैं । सिंह साहब से बात हुई तो उन्होंने बताया कि धंधा थोड़ा मंदा ही चल रहा था । इसलिए कुछ ज्यादा पैसा नहीं निकलता । जितना निकलता था राकेश की तरफ उन्होंने उसके क्रिया कर्म में लगा दिया । 

    मधु ने आज तक एटीएम कार्ड पैसा निकालना नहीं आता था । जब मां के साथ मायके गई थी उसके पास एक भी पैसा नहीं था । उसे बस 15 दिन अच्छा लगा लगा । सब उसके दुख में भागीदार बन रहे थे, पर यहाँ भी जो आता उसे बेचारी ही समझता । 


     फिर घर का माहौल भी बदलने लगा, बच्चो के दूध में पानी बढ़ने लगा , उसे लगा भाभी की नजरें बदलने लगी है । शायद उसका भ्रम हो ! क्योंकि व्यक्ति का वक्त खराब होता है तो उसे अपने भी पराये नजर आते है । उसे लगता था सबको पता है मेरे पास पैसे नहीं है । तो मुझे सब बेचारी कहते हैं। ।पहले मधु मायके जाती थी तो ढेरों पैसे लेकर जाती थी सब पर खूब खर्च करती थी । इस बार में मधु खाली हाथ गई थी। बिना राकेश की गई थी । वह समझ गई थी कि अब और ज्यादा दिन मायके में नहीं रह सकती है । उसके बच्चे जिद करते तो उसे अपनी माँ से भी पैसे मांगने में भी शर्म लगने लगती ।

      

     वह भाई के साथ एटीएम गई ,और एटीएम से पैसे निकालना सीखें । यह गनीमत थी कि मधु को एटीएम का पिन नम्बर पता था क्योंकि एक बार उसको राकेश ने बताया था कि उसने एटीएम का पासवर्ड नंबर मधु की जन्म तारीख पर रखा हुआ है । वह दस हजार निकाल कर लायी । फिर पहले की तरह खर्च किये । तो उसे संतुष्टि हुई। अब उसे मायके में रहते हुए चार महीने हो गए थे । कब तक यहाँ रहती बच्चों की स्कूल का हवाला देकर वापस अपने घर आ गई ।


 इस बार उसकी मां साथ में नहीं आई थी , पापा की तबियत ठीक नही थी , तो कहाँ थोड़े दिन बाद आ जाऊंगी,अब मधु को सब कुछ अकेले ही करना था वह बहुत अकेली हो गई थी । दिनभर आंखों से आंसू टपकते रहते थे ।एक दिन बच्चों ने पूछा


" मां पापा कब आएंगे "


मधु फफक के रो पड़ी , तब बच्चे कितना डर गए थे । अब मधु को समझ में आया कि उसकी हालत देखकर बच्चों पर गलत असर होगा । क्योंकि बच्चे तो बहुत नादान है ढाई साल का राजू और 4 साल की सोनी, उसने सोच लिया


 " बच्चों के लिए ही मुझे जीना है उनके सामने मुझे रोना नहीं है कमजोर नहीं पड़ना है" 


 वह अकेले में जाकर रो लेती थी । इस समय उसे राकेश की बहुत याद आती थी । वह कहता था "मैं हूं ना मधु तुम क्यो चिंता करती हो"


 "कहां हो राकेश तुम आ जाओ मुझे बहुत जरूरत है तुम्हारी राकेश क्यों मुझे छोड़ कर चले गए तुम क्या करूं मैं तुम्हारे बिना" 

कभी-कभी मधु को लगता कि वह खुद को खत्म कर दे पर बच्चों का मासूम चेहरा देखकर उसके कदम डगमगा जाते थे । वह जानती थी उसके बाद बच्चों का क्या होगा। जो करना था अब मधु को ही करना था । 


सिंह साब यदा-कदा आ जाते थे । बच्चों के हाल-चाल लेने । राकेश था तब भी वो आते जाते थे वे । अधेड़ उम्र के अच्छे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे । उनका एक पुत्र था जो अमेरिका में सेटल हो चुका था । पत्नी का 4 वर्ष पूर्व ही देहांत हुआ था ।वह भी जानते थे कि मधु को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है । अकाउंट में इतना पैसा भी नहीं है कि उसके ब्याज से बैठ कर खा सके ।वे उसका हौसला बढ़ाते थे । और उसे बाहर निकलने की सलाह देते थे । 


पर हाय रे दुनिया उन्हें मधु का यह अपनापन भी नहीं भाया । जवान विधवा के उठने बैठने पर भी सबकी नजर रहती है । लोग उसमें भी बातें बनाने लगे । इसका क्यों यहां आना जाना है राकेश नहीं है तो इनका यहां का क्या काम । और न जाने क्या क्या बात है । जब यह बात मधु के कानों तक पहुंची मधु की तो रुलाई ही निकल गई ।


'छि कितनी गंदी बात करते है लोग ,वे मेरे पिता समान है '


उसे राकेश की बात सुनाई देती ,


"बहुत जालिम है ये दुनिया मधु" बहुत जालिम है


एक दिन मधु थोड़ा तैयार हो गयी उसमे भी लोगो की उंगलियां उठने लगी ,अब मधु ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब वह लोगो की नही सुनेगी। लोगो का तो काम ही होता है कहना। उन्हें किसी की खुशी सहन नही होती।मधु का बैंक बैलेंस बहुत तेजी से खत्म हो रहा था ।

अब उसको घर चलाने की चिंता होने लगी । "अब यह घर कैसे चलेगा , कहां से लाएंगे पैसे । 

  

  ग्रेजुएट थी मधु, मगर नौकरी करती तो बच्चों को कौन सँभालता, दोनो बच्चे ही अभी छोटे थे ।माँ को भी बुलाती तो कब तक उन्हें अपने पास रखती । वह कुछ ऐसा काम सोच रही थी जिसे घर बैठे वह कर सके । मगर कुछ समझ में नही आ रहा था ।मधु ने सोचा सिंह साहब से मिलकर आना चाहिए । वह कुछ उपाय बता सकते है । 


 राकेश के मरने के बाद उसका चचेरा भाई राकेश की बाइक ले गया , यह कहकर के भाभी इसका आप क्या करोगे यह मुझे दे दीजिए । और मधु ने देदी । इसी तरह कार भी रखी थी कोई भी रिश्तेदार या पड़ोसी किसी भी समय आ जाते । और मधु से कार मांग कर ले जाते ।


   " कार दे दो यहां जाना है , वहाँ जाना है ,वैसे भी तो रखी है । कौन सी हमारे बैठने से खराब हो जाएगी । थोड़ा ना करने पर यह भी सुनने को मिल जाता । की पेट्रोल तो हम अपना ही खर्च करते है । 


    मधु को सिंह साहब के घर जाना था उसने पड़ोस के लड़के को बुलाया जो अक्सर मधु की कार ले जाता था । 


"जतीन मुझे किसी के घर जाना है ले चलोगे बस 1घंटे की बात है "


" अरे भाभी मुझे अभी काम है नहीं तो आपको जरूर छोड़ता" जतिन बहाना बनाते हुये बोला 


  अब वह ऑटो करके गई , दोनों बच्चों को भी ले गयी। सिंह साहब ने कहा मधु तुम राकेश के बिजनेस को ही आगे बढ़ाओ । 


   पर सर मैं यह कैसे कर पाऊंगी बच्चों की जिम्मेदारी है मैं बाहर नहीं निकल पाऊंगी" मैं औरत होकर कांट्रेक्टर , कैसे करूँगी।


   सिंह साहब ने कहा " देखो मधु राकेश के बिना हमारा बिज़नेस बिल्कुल ठप हो । मैं भी इसको बंद ही करने की सोच रहा हूं । पर बहुत सारे लोग जो इससे जुड़े हुए हैं सब बेरोजगार हो जाएंगे । मुझे भी एक व्यक्ति का साथ चाहिए अगर तुम साथ दोगी तो हम इसको फिर से आगे बढ़ा लेंगे तुम चाहो तो इसका ऑफिस अपने घर में खोलो जिससे तुम्हें घर पर ज्यादा वक्त देने को मिल जाए ,और वही बाहर के काम जब बच्चे स्कूल जाए तब तुम बाहर का काम कर लिया करना । मधु को उनकी बात समझ में आ गई उसने कहा कि "सर ठीक है मैं आपको सोच कर बताती हूं ।"


 वापस आते समय बड़ी मुश्किल से ऑटो मिला सिंह साहब ने मधु को सलाह दी कि एक एक्टिवा क्यों नहीं खरीद लेती अच्छा रहेगा तुम्हारे और बच्चों के लिए ।


    "मुझे चलाना नही आती " मधु ने बेचारगी से कहा


" तो क्या हुआ सीखने में कितना टाइम लगता है सीख लेना"

सिंह साहब ने समझाया 


  मधु घर आई तो तो सबसे पहले मोबाइल में देखा70 हजार की आ रही थी एक्टिवा।


   वह सोचती है , "अरे इतना पैसा एक्टिवा में खर्च कर दिया आगे क्या होगा "


   फिर उसे अपनी बाइक की याद आई रोहित की बाइक भी तो है उसे बेचकर सेकंड हैंड आराम से आ सकती है उसने चचेरे देवर को फोन लगाया ,भैया आपसे काम है जरा, घर आएंगे ,देवर शान से उसी बाइक पर बैठकर आया ,अभी तक जब से बाइक लेकर गया था तब से मुड़कर भी नहीं देखा था ।


"भाभी क्या काम है बताइये , मुझे जरा जल्दी है " उसने लापरवाही से कहा.


 "मुझे बाइक चाहिए इसको मैं बेचना चाहती हूं और अपने लिए स्कूटी खरीदना चाहती हूं , मधु ने स्प्ष्ट कहा 


देवर सकते में आ गया और बोला "अरे भाभी आप कहां बाहर निकलोगे ,कुछ काम हो तो मुझे बता दिया करना ।


"भैया अब घर छोटे बड़े सभी काम मुझे ही करने पड़ते है इसलिये बहुत जरूरी हो गया है ,मेरे लिये गाड़ी लेना । तुम तो मुझे चाबी दे दो " मधु की आवाज में दम था ।

    

बड़ी मुश्किल से उसके देवर ने मुँह बनाते हुए चाबी दी " ये लीजिये" और चला गया।


मधु राकेश की डायरी से मैकेनिक का फोन नंबर निकालती है और उसे घर बुलाती है , और गाड़ी की कीमत पूछती है । 

    "मेडम मुश्किल से डेढ़ साल हुआ है उसके तो आपको 40 हजार आराम से मिल जाएंगे " । मेकेनिक बाइक की जांच करते हुये कहता है ।


    वह सब जिम्मेदारी मैकेनिक को ही दे देती है । आप इसे बिकवा दो और कोई सेकंड हैंड एक्टिवा हो तो मेरे लिए देख लीजिए अपना कमीशन निकालकर । वह मधु को एक्टिवा दिला देता है । और मधु की एक्टिवा घर आ जाती है ।


     पड़ोस की लड़की के साथ मधु एक्टिवा चलाना सीख जाती है । औऱ वह कार चलाने वाला कोर्स भी ज्वाइन कर लेती है । और कार चलाना भी सीख जाती है । लोग अब भी मधु के बारे में बाते बनाते थे । पर अब उसने ध्यान देना छोड़ दिया था । अब वह खुश रहती है ।


   अच्छा सा मुहूर्त देखकर घर में ऑफिस बनाया जाता है । और मधु अपने काम का शुभारंभ कर देती है । आर & एस कंस्ट्रक्शन का बोर्ड मधु के घर के बाहर टंग जाता है ।


वह जानती थी यह काम इतना भी आसान नही है । खासकर औरतों के लिये । फिर भी मधु तन मन लगाकर मेहनत करने लग जाती है । सिंह साब फील्ड का पूरा ध्यान देते थे । और ऑफिस के काम मधु निपटाती थी । पेपर वर्क करना । कंप्यूटर पर काम , नये टेंडर भरना सब मधु ने सिख लिया था । कुछ बाहर का काम होता तो बच्चे स्कूल जाते तब तक कर लेती। वह फील्ड पर भी जाती थी । जब काम पड़ता बच्चो को लेकर भी चली जाती । इनकी कम्पनी फिर से फलने फूलने लगी ।


   सिंग साहब का पूरा साथ था मधु को। तीन साल बाद वह मधु को पूरा काम सौपकर बेटे के पास चले गये । मधु ने यह झटका सह लिया क्योंकि वह अब सब काम करना जानती थी । और आत्म निर्भर हो गयी थी ।

    

  पांच साल बाद , मधु को कॉन्ट्रेक्टर ऑफ द ईयर का अवार्ड दिया जा रहा है ।और सामने मधु का पूरा मायका बच्चो के साथ बैठकर ताली बजा रहा है ।


  


    



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