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वड़वानल - 74

वड़वानल - 74

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‘‘बाहर क्या हो रहा है, यही समझ में नहीं आता। दिन निकलता है और डूब जाता है। हर आने वाला दिन कुछ नये सैनिक कैम्प में लाता है और डूबते हुए कुछ सैनिकों को ले जाता है। रेडियो नहीं, अख़बार नहीं… बस, बैठे रहो। बुलाने पर जाओ और पूछे गए आड़े–तिरछे सवालों के जवाब दो। कब ख़त्म होगा यह सब ?’’ चट्टोपाध्याय परेशान आवाज़ में बोला।

‘‘ये लो कुछ पुराने अखबार।’’ जी. सिंह ने पेपरों का एक बण्डल उनके सामने डाला।

‘‘तुझे कहाँ से मिले ?’’ खान ने पूछा।

‘‘मिले नहीं। हासिल किये। कुछ यहाँ आए हुए सैनिकों से, कुछ पहरे पर तैनात सैनिकों से।’’ जी. सिंह ने जवाब दिया। उन अख़बारों पर सभी भूखों की तरह टूट पड़े।

‘‘साळवी सा’ब, ज़रा ध्यान रखना। कोई आता दिखे तो खाँसकर सावधान करना!’’ गुरु ने साळवी से कहा।

‘‘ठीक है। इत्मीनान रखो!’’ साळवी ने आश्वासन दिया।

सब लोग उन बासे, मगर उनके लिए ताज़े अख़बारों को पढ़ने में मगन हो गए।

‘‘आख़िर में कांग्रेस ने सेन्ट्रल असेम्बली में स्थगन प्रस्ताव पेश कर ही दिया।’’ दास ने कहा।

‘‘स्थगन प्रस्ताव तो पेश किया मगर हमारे विद्रोह के पीछे जो कारण थे, वे तो उसमें प्रतिबिंबित ही नहीं हुए। एक ही कारण बताया गया। मुम्बई, कलकत्ता, कराची और अन्य शहरों में जो गम्भीर परिस्थिति निर्माण हुई उसका कारण यह था कि अधिकारी परिस्थिति को ठीक से सँभाल नहीं पाए। मुस्लिम लीग और कांग्रेस के वक्ता एक के बाद एक बोलते रहे, मगर उन्होंने भी एक ही मुद्दा सामने रखा: सरकार परिस्थिति सँभाल नहीं सकी। हमारी माँगें क्या थीं, स्वतन्त्रता की माँग पर हम किस तरह से अड़े हुए थे इस बारे में किसी ने भी कुछ भी नहीं कहा ।’’ खान यह बता रहा था कि राष्ट्रीय पक्षों ने स्थगन प्रस्ताव तो रखा मगर महत्त्वपूर्ण मुद्दों को किस तरह छोड़ दिया।

‘‘अली ने कहा, सैनिकों को पार्टियों की राजनीति से दूर रहना चाहिए और उन्हें निष्पक्ष देशभक्त होना चाहिए। मैं तो यही समझ नहीं पा रहा हूँ कि वह कहना क्या चाहते हैं। देशप्रेमी सैनिक गुलामगिरी लादने वाली विदेशी हुकूमत की ओर से कैसे लड़ सकते हैं ? वे भी सरदार पटेल ही की तरह ये कह रहे हैं कि स्वतन्त्रता की नैया किनारे से लगने ही वाली है।‘’ गुरु की आवाज़ में चिढ़ थी। “ मसानी को छोड़कर बाकी हर वक्ता कमोबेश सरकार का ही पक्ष ले रहा था। हमारे साथ चर्चा करते हुए जिन्होंने ब्रिटिश सरकार को गालियाँ दी थीं वे भी गला फाड़–फाड़कर कह रहे थे कि यह संकट जड़ से ही उखाड़ा जा सकता था, मगर सरकार ने वैसा किया नहीं।’’

‘‘तुम जो कह रहे हो, वह सच है । असल में सिर्फ मसानी ही हमारे पक्ष में बोले। बेशक, उन्होंने हमारी माँगों के बारे में कुछ कहा नहीं, मगर निडरता से यह कह दिया कि जब तक देश की आर्मी, नेवी और एअरफोर्स शान्त हैं, तभी तक अंग्रेज़ इस देश को छोड़ दें। देशहित की दृष्टि से राष्ट्रीय नेताओं और पार्टियों ने सरकार का साथ दिया इसीलिए परिस्थिति पर काबू पाया जा सका। नैतिक दृष्टि से यदि किसी की जीत हुई है, तो वह आत्मसमर्पण करने वाले सैनिकों की, सरकार की नहीं।’’ बैनर्जी ने कहा।

‘‘ये गोरे हमें इस तरह नहीं छोडेंगे। हम पर अत्याचार करेंगे, हमारा जीना दूभर कर देंगे और ये नेता चुपचाप बैठे रहेंगे, क्योंकि उनकी राय में हम ऐसे सैनिक हैं जिन्होंने चार पैसे ज़्यादा कमाने के लिए, अच्छे खाने के लिए, अधिक सुविधाओं के लिए हथियार उठाए थे। हमारे देशप्रेम को, स्वतन्त्रता की हमारी आस को वे समझ ही नहीं पाए। अब तो हम हो गए निपट अकेले ।’’ दास के स्वर में निराशा थी।

‘‘तुम ठीक कह रहे हो। एचिनलेक ने तो 25 तारीख को साफ़–साफ़ कह दिया है कि विद्रोह के नेताओं की और विद्रोह में शामिल सैनिकों की स्वतन्त्र रूप से पूछताछ करके उन पर कार्रवाई की जाएगी। वॉर सेक्रेटरी मैसन ने भी सेन्ट्रल असेम्बली में यही कहा था - कुछ भिन्न शब्दों में। सरकार की नीति यह है कि किसी पर भी बदले की भावना से कार्रवाई न की जाए और मेजर जनरल लॉकहर्ट को भी इसकी सूचना दे दी गई है। मगर सरकार उन्हें खास सूचनाए देकर उनके हाथ नहीं बाँधना चाहती, उन्हें उनके रास्ते से जाने दे रही है।’’ गुरु ने दास की राय का समर्थन किया।

‘‘मतलब, मैसन ने और सरकार ने यह मान लिया है कि विद्रोह में शामिल हुए सैनिकों को चुन–चुनकर निकाला जा रहा है और उन्हें कुचलने का काम जारी है। और इस बात पर सभी राष्ट्रीय नेता ख़ामोश हैं।’’  मदन ने कहा।

‘‘एक बात याद रखो। हमने जो कुछ भी किया, जानबूझकर किया है। परिणामों की कल्पना हमें थी। अब हमारा साथ देने वाले, देशपाण्डे जैसे, अपनी चमड़ी बचाने की कोशिश कर रहे हैं। फ्री प्रेस में उनका लेख देखा ? वही पुरानी कहानी और सरकार को मुफ़्त में सलाह। इस विद्रोह को बाहर से किसकी शह थी, यह पता करने में समय न गँवाए। इस विद्रोह के पीछे के असली गुनहगार तो ‘तलवार’ के रसोइये हैं। ये सभी Fair weather Friends थे। सरकार के विरोध में हमारा संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ है, वह अभी चल ही रहा है। जो चाहे वो कीमत चुकाकर अपने आत्मसम्मान को बचाना है। आज़ादी के लिए लड़ने की हमारी तैयारी थी, है, और रहेगी। जो मिले उस सज़ा का हम निडरता से सामना करें यही हमारे उद्देश्य का और उसके लिए अंगीकृत किए कार्य का गौरव है।’’ खान ने मुरझाए हुए सैनिकों में जान डाल दी।

‘‘तुम ऐसा क्यों नहीं करते कि ये सारी माँगें लिखकर मुझे दे दो। मैं उन पर शान्ति से सोचूँगा और तुम्हें सूचित करूँगा। मेरा ख़याल है कि तुम यह भूख हड़ताल छोड़ दो।’’ रॉटरे ने सलाह दी।

‘‘माँगें पूरी होते ही छोड़ देंगे।’’ खान ने जवाब दिया।

‘‘रॉटरे समझ गया कि यदि समय पर ही इसे नहीं रोका गया तो मामला हाथ से बाहर चला जाएगा। उसने नॉट को इस सम्बन्ध में सूचना दी और वह बाहर निकल गया।

सैनिकों के उपोषण का आज तीसरा दिन था। उपोषण पर बैठे सैनिकों के चेहरे पीले पड़ गए थे। कमज़ोरी के कारण उनसे चला भी नहीं जा रहा था। वे समझ गए थे कि उनका यह संघर्ष एकाकी है, निष्फल है। वे बाज़ी हार गए हैं, मगर उनका जाग चुका आत्मसम्मान उन्हें चेतना दे रहा था।

दोपहर दो बजे के करीब कैप्टन नॉट दनदनाता हुआ सैनिकों की बैरक की ओर आ रहा था। रॉटरे के सुझाव के अनुसार खान को इन सैनिकों से अलग करने का उसने निश्चय कर लिया था। इसके लिए आवश्यक काग़ज़ात भी उसने तैयार कर लिए थे। उसकी सर्विस डॉक्टयूमेंट में उसने टिप्पणी लिखी थी, ‘‘बेहद ख़तरनाक क्रान्तिकारी। सैनिकों को अपने पक्ष में करने में उस्ताद। यह जहाँ भी रहता है, तूफ़ान खड़ा कर देता है।’’

‘‘मैं तुम्हें एक घण्टे की मोहलत देता हूँ, तीन बजे से पहले अगर तुमने अन्न सत्याग्रह नहीं तोड़ा तो मुझे किसी और रास्ते से जाना होगा।’’ नॉट ने सैनिकों को अन्तिम चेतावनी दी।

‘‘हमारा निश्चय पक्का है। तुम्हें जो कार्रवाई करनी है, कर लो!’’ खान के जवाब में बेपरवाही थी।

अपमानित नॉट वहाँ से निकल गया और अगली कार्रवाई की तैयारी में लग गया।

‘‘क्या तय किया है तुम लोगों ने ?’’  घण्टेभर बाद वापस आए नॉट ने पूछा।

‘‘तय क्या करना है ? हम अपने निर्णय पर कायम हैं।’’ खान ने जवाब दिया।

''Guards...Guards!'' नॉट चिल्लाया। भूदल के चार जवान आगे आए।

‘‘उठाओ इस साले को।’’ खान की ओर इशारा करते हुए नॉट चिल्लाया। नॉट का इरादा सैनिक समझ गए और उन्होंने खान के चारों ओर घेरा बना लिया।

 सुबह–सुबह ही रीअर एडमिरल रॉटरे मुलुंड कैम्प में दाखिल हुआ। विद्रोह के दौरान उसके चेहरे पर जो चिन्ता की रेखाएँ थीं, उनका अब नामोनिशान नहीं था। विद्रोह के दौरान उसके द्वारा उठाया गया हर कदम उचित ही था इस बात की सरकार द्वारा पुष्टि किये जाने से उसका आत्मविश्वास बढ़ गया था। शुरू से ही मगरूर चेहरे पर कुछ और धृष्टता छा गई थी।

रॉटरे कैम्प में आया और एक ही दौड़धूप होने लगी। मराठा रेजिमेंट के सन्तरी अटेन्शन में आ गए। नॉट भागकर रॉटरे के सामने आया।

‘‘कहाँ हैं वे ?’’  रॉटरे ने पूछा।

‘‘उस सामने वाली बैरेक में, ’’ नॉट ने कहा।

‘‘और बाकी के सैनिक ?’’ रॉटरे ने पूछा।

‘‘वहीं, उसी बैरेक में।’’ नॉट ने कहा।

रॉटरे के चेहरे पर नाराज़ी साफ़ झलक रही थी।

‘‘कौन बैठै हैं सत्याग्रह पर ?’’ रॉटरे ने पूछा।

 ‘‘खान, दास, गुरु, मदन...’’ नॉट ने कहा।

'Bastards! उन्हें तो मुझे तो अच्छा सबक सिखाना है!’ रॉटरे अपने आप से बुदबुदाया। इन सैनिकों के प्रति द्वेष उसके‘ग्रिफ़िथ के साथ ‘तलवार’ पर आया था तो कैप उतरवाई थी, आज मैं तुम्हारे कच्छे उतरवाता हूँ!’ वह अपने आप से बुदबुदाया और बोला, ‘‘नॉट, do not spare them! F***them left and right!'' रॉटरे की आँखों में अंगारे दहक रहे थे| ‘‘ये प्लेग के जन्तुओं से भी ज़्यादा ख़तरनाक हैं। सत्याग्रह का रोग ये देखते–देखते चारों ओर फैला देंगे। उस खान को पहले अलग करो।‘’

‘‘ठीक है सर, आज ही उसे अलग करता हूँ।’’ नॉट ने जवाब दिया।

‘‘नहीं। जल्दी मत करो। उनसे उपोषण पीछे लेने को कहो। यदि उन्होंने उपोषण खत्म नहीं किया तो फिर कार्रवाई करो।’’ रॉटरे ने सलाह दी।

''Hello, boys! What's the problem ?'' रॉटरे ने उपोषण पर बैठे सैनिकों से पूछा। आवाज़ में भरसक मिठास लाने की कोशिश करते हुए उसने आगे कहा, ‘‘जितनी हो गई, उतनी रामायण बस नहीं हुई क्या ? क्यों फ़ालतू में अपने आप को और हमें तकलीफ़ देते हो ?’’

खान को और उसके साथियों को रॉटरे के ये नाटक अच्छी तरह मालूम थे। ‘तलवार’ पर उन्हें इसका अनुभव हो चुका था। खान ने तय किया कि बड़ी सावधानी से बोलेगा। उसने हाथ के इशारे से औरों को चुप रहने को कहा और बोला, ‘‘हमारा यहाँ का जीवन अनेक ख़ामियों से भरा है। उन ख़ामियों को दूर करो, कानूनी सहायता हमें मिलनी चाहिए, जाँच कमेटी पक्षपातरहित होनी चाहिए।’’

रॉटरे को खान की इन माँगों से दूसरे तूफ़ान की गन्ध आई। ‘‘दूर करो इन सबको और उठाओ उसको।’’ नॉट ने आगे बढ़कर भूदल के सैनिकों से कहा।

संगीनों को साधते हुए भूदल के सैनिक आगे बढ़े। उनमें से एक ने खान का गिरेबान पकड़कर उसे उठाने की कोशिश की, मगर खान उठने को तैयार न था।

‘‘उठाओ उसे! पकड़ो उसकी टाँगें और गर्दन!’’ नॉट चीख रहा था।

चिढ़ा हुआ गुरु नॉट पर लपका। उसने उसकी कैप उछाल दी, कन्धे की स्ट्राइप्स खींच लीं। इस छीना–झपटी में नॉट की कमीज़ फट गई। चिढ़े हुए नॉट ने गुरु के चेहरे पर जूते से लात मारी और गुरु तिलमिलाते हुए पीछे दीवार से जा टकराया।

परिस्थिति ने गम्भीर मोड़ लिया।

''Come on, open fire.'' नॉट मराठा रेजिमेंट के सैनिकों पर चिल्लाया।

खान का गिरेबान जिन्होंने पकड़ा था, उन्होंने उसे छोड़ दिया और वे खामोश खड़े रहे। आज्ञा का पालन करने के बदले भूदल के सैनिक शान्ति से खड़े हैं यह देखकर नॉट आपे से बाहर हो गया और चीख़ने लगा, ‘‘मेरा हुक्म है, गोली चलाओ! गोली चलाओ! ओपन फायर करो वरना मैं तुम्हारा कोर्ट मार्शल करवा दूँगा!’’

मराठा रेजिमेंट्स के सैनिकों ने अपनी राइफल्स नीचे कर लीं और सूबेदार मेजर कदम ने नॉट को तेज़ आवाज़ में धमकाया, ‘‘साब, ये हमारे दुश्मन नहीं हैं। ये सब हमारे भाई हैं। हम इन पर गोली नहीं चलाएँगे। तुम हमारा कोर्टमार्शल करो या हमारी जान ले लो। हम गोली नहीं चलाएँगे।’’

खान ने नारा लगाया, ‘भारत माता की...’ और ‘जय’ की आवाज़ गूँजी, फिर बड़ी देर तक मुलुंड का कैम्प नारों से गूँजता रहा। अपमानित नॉट हाथ–पैर पटकते हुए निकल गया और नौसैनिकों का उत्साह दुगुना हो गया। मगर उनका यह उत्साह ज़्यादा देर नहीं टिका।

घण्टेभर में चार ट्रक भर के गोरे सैनिक आए। आते ही उन्होंने अपनी बन्दूकें और मशीनगन्स तानते हुए सत्याग्रह पर बैठे सैनिकों की बैरेक को घेर लिया।

कुछ गोरे सैनिकों ने मराठा रेजिमेंट के सैनिकों को गिरफ़्तार करके उन्हें नि:शस्त्र कर दिया।

''Come on, you two bastards, move out.'' प्लैटून कमाण्डर बैरेक में घुसकर गुरु और खान पर चिल्लाया। मगर सत्याग्रह पर बैठे नौसैनिक नारे लगाते रहे और गुरु और खान अपनी–अपनी जगह पर इत्मीनान से बैठे रहे। बैरेक में हो रहा हंगामा सुनकर अन्य बैरेक्स के नौसैनिकों को भागकर इस बैरेक की ओर आते देखा तो नॉट समझ गया कि अगर ये चार सौ सैनिक एक हो गए तो परिस्थिति विकट हो जाएगी। वह चीखा, ''Stop them! open fire!'' गोरे सैनिकों ने अपनी बन्दूकें तानीं और फ़ायरिंग शुरू कर दी। घबराए हुए सैनिक अपनी–अपनी बैरेक्स में भाग गए।     गोरे सैनिकों ने खान, दास, चट्टोपाध्याय और गुरु को उठाकर सामने ही खड़े ट्रक में ठूँस दिया। दो बंदूकधारी गोरे सैनिक ट्रक में चढ़े और ट्रक अपनी पूरी गति से कैम्प के गेट से बाहर निकल गया। मराठा रेजिमेंट के सैनिकों को कैम्प से निकाल लिया गया।


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