ग़ज़ल :-
ग़ज़ल :-
जगमगाते हुए लिबासों से
ख़ौफ़ लगता है अब जनाबों से।
ए समन्दर डबो ही दे मुझको
मौत बहतर है इन किनारों से।
बस हक़ीक़त है ज़ीस्त का दरमाँ
ज़ीस्त मुमकिन नहीं है ख़्वाबों से।
तीरगी रास आ गई उसको
ज़िन्दगी डर गई उजालों से।
कुछ अजब सी नमी है मौसम में
इक सदा आती है पहाड़ों से।