Ashok Goyal
Others
शम्स के ढब में ढल के आना था।
कोई सूरत, निकल के आना था।
रूबरू होना था ज़माने से।
अपना चेहरा बदल के आना था।
कुछ नया हो, अजब सा हो कुछ, तो
ख़ुद से बाहर निकल के आना था।
ये तय था, हादसात होंगे ही।
पास अपने सँभल के आना था।
ग़ज़ल :- ज़ीस्त ...
जब से तुम आ ब...
मुहब्बत की तप...
मोहब्बतें
ग़ज़ल
ग़ज़ल :-
उतर न जाय कही...