ग़ज़ल :-

ग़ज़ल :-

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शम्स के ढब में ढल के आना था।

कोई सूरत, निकल के आना था।


रूबरू होना था ज़माने से।

अपना चेहरा बदल के आना था।


कुछ नया हो, अजब सा हो कुछ, तो 

ख़ुद से बाहर निकल के आना था।


ये तय था, हादसात होंगे ही।

पास अपने सँभल के आना था।


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