तब फिर सतयुग आएगा
तब फिर सतयुग आएगा
आज फिर मानस पटल पर
पुकारती एक आवाज़ है,
आज फिर से कुछ
बनाना नया साज है।
अद्भुत अनुपम मलय संग
फिर घुल मिल जाना है,
सदविचारों की क्रांति ही
जन जन में लाना है।
कालनेमि सी बुद्धि को
अब तो दूर भगाना है,
हर जन में आज पुनः
फिर से राम जगाना है।
प्राण वायु संग मिल
बस घुल मिल जाना है,
हर दुर्भाव को दिलों से
अब तो दूर भगाना है।
इस नई चिंगारी से
अब हर रावण को हराना है,
मुस्काये बस जहाँ मनुजता,
ऐसा सतयुग लाना है।
जाने जो अंतस की यात्रा,
ऐसा पाठ पढ़ाना है,
अन्तः भ्रमन की सीख से,
जन जन को जगाना है।
फिर न कोई दर्द होगा,
न कराहती मानवता होगी,
एक प्यारे से परिवार सी,
ये प्यारी सी वसुधा होगी।।
