सुनहरा बचपन
सुनहरा बचपन
झमाझम बारिश बरसती है
कुदरत नहाकर निखरती है
बेटा जब काग़ज की कश्ती चलाता है,
तब मुझे भी बचपन याद आता है...।
तैयार रहता है पार्क में जाने को शाम को,
ध्यान बाहर जाने में लगा रखता छोड़ काम को,
गुस्सा बहुत आता है,
जब खेलने वो जाता है,
तभी मुझे भी बचपन याद आता है...।
कबड्डीहो या पिल्ली डंडा,
हो खो-खो या गिल्ली डंडा,
बेटा जब खेल खेलता हुआ सबसे शाबाशी पाता है,
उस पर गर्व करते-करते बचपन याद आता है...।
किस -किस घटना की बात करूँ,
किस-किस किस्से को याद करूँ,
हर क्षण हर पल दिल जिसको भूल न पाता है,
वही...हाँ वही बचपन याद आता है...।
अपने बेटे की हर हरकत में मेरा दिल,
अपना बचपन जी जाता है,
मेरे जीवन का वो सुनहरा युग,
मेरा बचपन याद आता है...।