छोड़ आए वे प्यारी गलियां
छोड़ आए वे प्यारी गलियां
गली थी हमारी बहुत बड़ी।
बहुत ही खूबसूरत अपनेपन से भरी।
यादें हमारी बसती है वहां बचपन की हमारी।
बहुत साल गुजारे वहां घूमते फिरते मस्ती करते।
सोचा नहीं था कभी यह गली को छोड़नी पड़ेगी
कभी होली जलाई, कभी होली खेली।
संग दोस्तों की टोली के करी हमने बहुत मस्ती
जब शाम को टोली इकट्ठे होती
लगता है यह गली नहीं घर है हमारा।
कभी रोड को ही मैदान बनाया।
सितोलिया, क्रिकेट राउंडर खेल से सजाया।
कभी आंख मिचोली खेली,
कभी मालदड़ी वही खेला।
क्या समय था वह बचपन हमारा प्यारा।
सब भाई बहन और दोस्तों से भरा।
एक बार गली में निकलो तो लगता सब कुछ अपना।
जैसे पूरी गली हमारा घर हो अपना।
इतना प्यारा था गली से नाता हमारा
छोड़ आए हम शादी के बाद वह गली वह मोहल्ला।
उसके बाद तो बहुत गली घर छोड़े।
मगर वह अपनापन कभी ना आया।
जो अपनापन पियर की गलियों में भाया।
आज भी जब जाते वहां हैं ढूंढते अपना बचपन कहां है।
अब ना वह लोग रहे ,ना वह गली वैसी रही।
बड़े-बड़े मकान सीमेंट के जंगलों से भर के
गली तो जैसे सीमेंट का जंगल बन गई।
छोड़ आए हम अपनी गली अपना मोहल्ला।
कभी-कभी मन होता उदास है,
जब करते हम बचपन को याद है।
यादों का क्या है वह तो आती ही रहती हैं।
नहीं आती तो आप बुला लेते हैं।
प्यारे बचपन को हम वापस बुला लेते हैं।
भले यादों में ही बुलाए और
अपने दोस्तों से वापस बातें कर लेते हैं।
और बचपन को याद कर लेते हैं।
फिर गली मोहल्ला याद कर लेते हैं।
वे शैतानियां याद कर लेते हैं।
एक बार फिर बचपन जी लेते हैं।