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Rashmi Sinha

Classics Inspirational

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Rashmi Sinha

Classics Inspirational

ड्योढ़ी

ड्योढ़ी

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मैं एक पुराने से मकान की,

हर कमरे के आगे बनी

अब सिर्फ इतिहास हूं,

सबने अपने ढंग से पढ़ा,

और अपने ही ढंग से,

मेरा खाका खींचा,


मैं ड्योढ़ी एक गुमनाम सी

लोगों ने कहा, ये गृहलक्ष्मी,

या हर घर के आगे

हर सीता के लिए

खिंची लक्ष्मण रेखा है।


पर मैं सदियों से,

इतिहास की गवाह

झूठ नही बताऊंगी।

हर ड्योढ़ी के पार,

रहता है एक परिवार,

और मैं प्रत्यक्षदर्शी हूँ।


मैंने यानी ड्योढ़ी ने

परिवार के भीतर आने वालों,

या बाहर कदम रखने वालों को,

हमेशा ही कराया है अहसास,

एक मर्यादा का

ड्योढ़ी के बाहर ,रख तो रहे हो कदम,

या आ रहे हो भीतर,

मत भूलना यहां प्यार बसता है,

एक परिवार बसता है।


करने पर उल्लंघन मैंने,

दी है एक हल्की सी चोट,

याद दिलाने को

और सबने रखा है मान,

मेरी इस चोट का,

पर अब

मैं इक गुमनाम सी ड्योढ़ी

अब ड्योढ़ी नही होतीं,

लोग फिसलते से अंदर आते हैं,

और उतनी ही तेजी से बाहर

शायद इसी लिए ड्योढ़ी नही,


टूटते बिखरते परिवार ज्यादा

अब गलती करने पर,

कोई उन्हें ठोकर नहीं लगाता,

मैं एक विलुप्त प्रजाति

ड्योढ़ी।


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