STORYMIRROR

Dheeraj kumar shukla darsh

Classics

4  

Dheeraj kumar shukla darsh

Classics

"कर्म फल"

"कर्म फल"

1 min
215

उगता हुआ सूरज, खिलते हुए फूल

बहती हुई हवा, ठहरा हुआ जल

अस्त होता सूरज, मुरझाते फूल

ठहर गयी हवा, अंगड़ाई लेता जल


आधार है सबका, कर्म करना यहाँ

जो ठहरा वो शून्य, बनाता कर्म महान

मोहक है सब कुछ, कर्मो से मिलकर

ना सूरज ने छोड़ा, कभी कर्म करना


ना नदियाँ ने छोड़ा, कभी कर्म करना

माटी ने भी तो, बीजों को संजोया

आंचल में अपने, अंकुरण है पाया


कर्मो का खेल, यहाँ सबसे निराला

करता है सबका, हिसाब ऊपर वाला

बुरे को बुरा, और अच्छे को अच्छा

आता है वो दिन, जब फल सबको मिलता।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics